- जिस भोजन में हमारे शरीर के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व होते हैं वह सन्तुलित आहार कहलाता है।सन्तुलित आहार में-प्रोटीन,विटामिन,मिनरल,कार्बोहाइड्रेट,वसा,शुगर,आदि का एक निश्चित अनुपात होता है ।ठीक उसी प्रकार समाज के विकास और राष्ट्र की समृद्धि के लिए भी सन्तुलित विकास आवश्यक है।डिजिटल इंडिया से न्यू इंडिया की संकल्पना आजकल सरकार की प्रमुखता में है. और इसके प्रचार-प्रसार के लिए काफी धनराशि खर्च की जा रही है. लेकिन ही वास्तविक राष्ट्रवाद है।सन्तुलित विकास के अभाव में अभी भी हमारा देश कई चुनौतियों से जूझ रहा है। आतंकवाद,नक्सलवाद तो गंभीर समस्याएं हैं ही,इसके अतिरिक्त भी भारतीय नागरिक जिनमें हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं कई प्रकार के भीषण और कठिन दौर का सामना कर रहे हैं.
देश का बच्चपन खतरे में
देश में आजादी से पहले और आजादी के बाद कुछ कार्य ऐसे हैं जिनको देश की सरकारें अभी तक पूर्ण रुप से संपन्न नहीं कर पाई हैं .शिक्षा और स्वास्थ्य जो किसी भी राष्ट्र की मूल भूत समस्या तो होती है मगर एक समृद्ध राष्ट्र की पहचान भी देश की बेहतर शिक्षा प्रणाली और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से भी आंकी जाती है .आज का बच्चा कलका नागरिक होता है .और कल कल के देश को संभालने की जिम्मेदारी भी आज के नौनिहालों के हाथ में ही होती है. देश का भावी भविष्य वर्तमान में गहरे संकट में नजर आ रहा है .कुपोषण और इलाज के अभाव में हर साल लाखों बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं ,और इन मौतों को अगस्त महीने की पारंपरिक मौत कहकर देश के राजनेता क्रूर मजाक करने से बाज नहीं आते हैं .देश का हर क्षेत्र अमीर -गरीब ,ऊँच-नीच और समानता की खाइयों से भरा नजर आता है।
जनप्रतिनिधियों की जवाब-देही सुनिश्चित हो
गरीब का वोट तो कीमती होता है मगर गरीब की और उनके बच्चों की कोई कीमत नहीं होती है, अगर होती तो गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कालेज और सैफई का मेडिकल कॉलेज गरीब बच्चों की कब्रगाह नहीं बनता । जहां आक्सीजन की कमी से सैकड़ों बच्चे अकाल ही मौत के मुंह में समा गए थे। और संवेदना व्यक्त कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाती है ,किसके सपनों का भारत बनाना चाहते हैं? हम खून पसीने से देश को सींचने वालों का या खून खून चूसने वालों का! आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले और सरकारी अस्पतालों में मरने वाले अधिकांश गरीब और वंचित तबके के ही लोग होते हैं। ऐसा लगता है देश का गरीब रामभरोसे और देश का अमीर सरकार भरोसे है ।ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह भारत में इस वक्त कंपनी का ही राज चल रहा है निजीकरण के नाम पर उद्योग पतियों को सरकार निरंतर मजबूत कर रही है। गरीबी हटाने में हम सफल तो नहीं हुए है, मगर गरीब को हटाने का अच्छा तरीका भारत के स्वास्थ्य में महकमे और खाद्य महकमों ने ईजाद कर लिया है ।राष्ट्रभक्ति और देश प्रेम के नारे तो लगवाए जाते हैं मगर भूखे पेट कोई देशभक्त नहीं हो सकता है यह सच्चाई भी स्वीकार करनी पड़ेगी ।वोट की कीमत अगर बराबर होती तो गरीब और अमीर के बीच प्रथम चुनाव से लेकर अब तक अमीर और गरीब के बीच धरती और आसमान का फर्क नहीं होता ।
गरीब और अमीर के बीच की खाई कम
एक और बुलेट ट्रेन की सौगात और दूसरी तरफ कहीं एक साइकिल चलाने का भी रास्ता नहीं है !जबकि यह हकीकत है कि भारत गांवों का देश है और 70% जनता कृषि पर निर्भर है मगर किसान आत्महत्या कर रहा है और अमीर के लिए बुलेट ट्रेन लाई जा रही है। क्या इस बुलेट ट्रेन में देश का वह गरीब मजदूर और किसान भी सफर कर पाएगा ?जिसने अपने लिए भी कुछ सपने देख कर बढ़-चढ़कर वोट किया था। मेरा मकसद विकास को गलत ठहराना नहीं है मगर असमानता की खाई भी विकास के साथ-साथ कम होनी चाहिए ।संचार क्रांति और सोशल मीडिया से जहां समाज की मीडिया से निर्भरता कम हुई है वहीं डेटा और आटा में भी संतुलन बनाने की जरूरत है। डाटा निरंतर सस्ते में सस्ता होता जा रहा है और गरीब मजदूर आटे दाल के भाव देखकर चिंतित है। संतुलित आहार जिस प्रकार शरीर के लिए आवश्यक है संतुलित विकास भी उसी प्रकार देश के चौहमुखी विकास के लिए भी आवश्यक है।तथा संतुलित विकास ही वास्तविक राष्ट्रवाद है
आई0 पी0 ह्यूमन
स्वतन्त्र स्तम्भकार