सोच बदलो।समाज जगाओ ।
जब से CAA पारित हुआ है कई सवाल खड़े हो रहे हैं।पड़ोसी देशों से धार्मिक रूप प्रताड़ित शरणार्थियों को भारत इज्जत से नागरिकता देगा।बड़ा हास्यस्पद लगता है।क्योंकि कहावत है “जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं।वो दूसरों के घरों पर पत्थर उछाला नहीं करते”।यहां गोमूत्र और गंगा जल से लोग पवित्र होते हैं,मगर एक इंसान के छूने से अपवित्र!
शरणार्थियों की चिंता।देशवाशियों की क्यो नहीं?
मुगलों ने बहुसंख्यक हिंदुओं की संस्कृति पर प्रहार किया जैसा कि भारत के इतिहास के विभिन्न लेखकों की पुस्तकों से प्रतीत होता है .जिसमें रोमिला थापर की पुस्तक “भारत का इतिहास ” इस संदर्भ में विस्तृत प्रकाश डालती है. मुगल कालीन शासक अकबर से पहले तक के शासकों का इस्लाम के उलेमाओं मौलवियों से बेहद करीबी संबंध होते थे राजत्व का दैवीय सिद्धांत जो हिंदुओं का प्राचीन राजतंत्र का सिद्धांत था मुसलमानों ने भी उसी सिद्धांत का अनुसरण किया.
मुसलमानों के भारत में आगमन से लेकर वर्तमान तक इस्लाम धर्म हमेशा ही अल्पसंख्यक धर्म रहा है आज भी अगर भारत और पाकिस्तान एक साथ भी होते तो फिर भी भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक होते इसलिए बार-बार यह कहना कि मुसलमानों ने जबरदस्ती हिंदुओं का धर्मांतरण किया तर्कसंगत नहीं लगता. पूर्ण रूप से इस तथ्य को नकारा भी नहीं जा सकता है कि मुसलमानों ने धर्मांतरण नहीं करवाया. मगर यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि आखिर धर्मांतरण हिंदू समाज में किसका हुआ या किस जाति का हुवा.” हाथ कंगन को आरसी क्या” वाली कहावत इस आशंका को भी दूर कर देती है. मुगल काल में क्यों और कैसे धर्मांतरण हुआ इसके लिए मुगलों की तानाशाही या क्रूरता को कारण माना जा सकता है. मगर आजादी के बाद भी आज लगातार हिंदू धर्म से दलित वर्ग के लोग पलायन कर धर्मांतरण कर रहे हैं और वह इस्लाम नहीं बल्कि बौद्ध धर्म की शरण में जा रहे हैं.
14 अक्टूबर 1956 को देश के संविधान निर्माता भारत रत्न डॉ भीमराव अंबेडकर ने लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया. क्या इसके लिए मुगलों को दोषी ठहराया जा सकता है या अंग्रेजों को दोषी ठहराया जा सकता है? अंबेडकर के धर्म परिवर्तन के लिए न इस्लाम और न हीं अंग्रेजों का कोई दोष नजर आता है -इस पर एक हिंदी फिल्म के गाने के बोल बिल्कुल फिट बैठते हैं कि–”हमैं तो अपनो ने लूटा ग़ैरों में कहाँ दम था”.डॉ0 अम्बेडकर और दलित समाज को जितना अपमानित और प्रताड़ित खुद अपने धर्म और समाज से होना पड़ा, उतना इस वर्ग को न मुगलों ने न अंग्रेजों ,पुर्तग़ालयों,और न अन्य किसी धर्म ने किया.
क्यों हो रहा है धर्मांतरण?
आज जब भारत को आजाद हुए 7 दशक के ज्यादा हो गए हैं धर्मांतरण गुणोत्तर क्रम में जारी है, और धर्मांतरण कराने वाले न तो मुसलमान हैं और न ही ईसाई .आज हिंदुत्व की नाभिक से इलेक्ट्रान अपने हिंदुत्व की स्थाई कक्षाओं को छोड़कर बुद्धत्व की कक्षाओं में प्रवेश कर रहे हैं, और जो इस नाभिक के वंचित और शोषित परमाणु हैं जिनको नाभिक से कभी भी स्थाई रूप से अन्य तीन कक्षों के इलेक्ट्रानों के समान ऊर्जा प्रदान नहीं की गई कि, वो अगली कक्षा में जम्प कर सके. इसीलिए सायद आज भी दलित वर्ग से निरंतर लोग बौद्ध धर्म की ओर पलायन कर रहे हैं. भारत को अगर अपनी सामाजिक संरचना हिंदुत्व के नाभिक को विखंडन होने से बचाना है तो सर्वप्रथम उसको परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक मॉडल को समझना होगा, और इसके लिए मनु मॉडल और जाति के मॉडल को धक्का देकर आधुनिक विज्ञान और प्राचीन बौद्ध कालीन ज्ञान को समझना होगा .जिससे भारत कि सामाजिक मानसिकता पर काल्पनिक मान्यताओं की लगी जंग मिट सकती है.
भारत को फिट रहना है तो समाज को भी फिट रखने की जरूरत .सिर्फ नारों से स्थिति में बदलाव होना संभव नहीं दिखता,इरादों में और नियति में भी स्वच्छता होनी चाहिए.कितना क्रांतिकारी और मन को सकूँन देने वाली बात होती कि जिस प्रकार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गाँधी की 150 वीं जयंती पर साबरमती से ऐलान किया कि “खुले में शौच से मुक्त हुवा देश”ऐसी ही घोषणा अगर होती कि ” जातिवाद से मुक्त हुवा देश”तो इससे ज्यादा विश्व गुरु क्या बन सकता था भारत जो हजारों सालों से जाति और असमानता के बोझ से मुक्त हो जाता!
मगर ऐसा कभी होगा भी ये यक्ष प्रश्न भारत के सामने हमेशा बना रहेगा.
शरणार्थियों की चिंता मगर देश के दलितों की नही:
बता दें कि नागरिकता कानून को भारतीय संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया जिसको नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) कहा गया है। .बिल के अनुसार पड़ोसी देशों में धार्मिक रूप से प्रताड़ित किये गए अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता दी जायेगी।सोचनीय विषय है कि हम अपने अंदर झांक कर देख ही नहीं रहे हैं।एक कहावत है-
“जिनके खुद के घर शीशे के बने होते हैं, वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते:”
ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त “पुरुष सूक्त” है एक मंत्र में पूरी हिंदुत्व की सच्चाई सामने आ जाती है
:ब्राह्मणोऽस्य मुखामासीद्वाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत.
एक वर्ग विशेष को इतना दबाया गया कि उसका जन्म ही ब्रहमा के पैरों से हुवा बताया गया है।बहुसंख्यक हिन्दू समाज का अभिन्न अंग होकर भी भारत के दलित,पिछड़े,आदिवासी अन्य देशों से शरणार्थी बनकर भारत आये धार्मिक अल्पसंख्यको से भी ज्यादा प्रताड़ित होते रहे हैं।भेदभाव और असमानता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि देश के राष्ट्रपति होकर भी रामनाथ कोविंद को पूरी के मंदिर में अपमानित होना पड़ा।टाइम्स ऑफ इंडिया की हैड लाइन में छपा था-

At Puri, priests block President Ram Nath Kovind’s way, shove .First Lady.(Jun 27, 2018, 08:56).इस घटना से अंदाज लगाया जा सकता है जब देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति साथ ऐसा बर्ताव हो सकता है दलित वर्ग के अन्य लोगों के साथ कैसा व्यहार होता होगा।ऊना की घटना जग जाहिर है।बाबू जगजीवन राम के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हुवा था।बनारस में डॉ0 संपूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण तत्कालीन उप प्रधान मंत्री बाबू जगजीवन राम के द्वारा किया गया था।लेकिन ब्रहमा के मुख से पैदा हुए हिंदुओं को ये हजम नहीं हुआ और उन्होंने उस मूर्ति को गोमूत्र और गंगा जल डालकर धोया गया और पवित्र किया गया।ऐसा है हमारा सनातन समाज ।2017 में सपा सरकार के बाद भाजपा सत्ता में आई और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने आवास को गोमूत्र और गंगा जल से शुद्ध कराया एक पत्रिका की हेड लाइन ऐसी बनी थी-
गोमूत्र और गंगाजल से बंगले को शुद्ध कराया, फिर रखा कदम(Mar, 20 2017 03:50:00 (IST)
कालिदास मार्ग यानी यूपी के मुख्यमंत्री का सरकारी आवास। पांच दिन पहले तक यहां अखिलेश यादव रहते थे। अब नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह बंगला बतौर मुख्यमंत्री आवंटित हुआ तो उन्होंने गृह प्रवेश करने से पहले बंगले का शुद्धिकरण कराया। वह भी विधि-विधान के साथ। योगी ने गोरखपुर से अपने विश्वस्त पुजारियों को बुलाकर सोमवार की सुबह से बंगले में धार्मिक अनुष्ठान कराए। बंगले को रोली ,गोमूत्र और गंगाजल से शुद्ध किया गया। बंगले के मुख्य प्रवेश द्वार समेत समस्त दरवाजों पर रोली से स्वास्तिक और ओम के चिह्न बनाए गए। बाद में हवन भी हुआ।
जरा विचार करें हम जैसे विश्व गुरु बनने का सपना देख रहे हैं?जब अपने ही घर शीशे के हैं तो,दूसरों के घर पर पत्थर नहीं उछाला करते।हिंदुत्व और सबका विकास सबका साथ एक साथ नहीं चल सकता है।धर्म और आस्था समाज का विषय हो सकता है ।मगर भारत की वर्तमान राजनीति धर्म पर ही टिकी हुई लग रही है।चुनाव भारत मे होते हैं और बात पाकिस्तान की होती है ,हिन्दू मुस्लिम की होती है।जब विकास और अपने कार्यों को जनता के बीच रखकर चुनाव नहीं जीता जा सकता है तो ऐसी खोखली राजनीति देश का भला नहीं हो सकता सिर्फ छलावा हो सकता है।क्योंकि यहां शासकों को गंगा जल और गोमूत्र की चिंता है भारत पुत्रों की नहीं।