एसआईटी के नाम पर सिर्फ स्कूलों को परेसान किया जा रहा है।
केंद्रीय एवम् राज्य सरकार के तमाम विश्वविद्यालय, काॅलज एवं शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजतियों के गरीब विद्यार्थियों को विगत लगभग तीन साल से पूर्व में दी जाने वाली स्कॉलरशिप नहीं मिल रही है,अति गरीब तबके से आने वाले समाजिक रूप से वंचित इन समुदाय के छात्रों के लिए इस स्कॉलरशिप का संजीवनी जैसा महत्व है। इससे न केवल कमजोर समुदाय के बच्चे छोटी छोटी रोजमर्रा की जरूरतें पूरा करते थे, बल्कि अपनी पढ़ाई किताबो,टूयूशन ,फार्म इत्यादि शुल्क के लिए भी इसी स्कॉलरशिप पर निर्भर रहते हैंं ।गरीब छात्रों की छात्रवृति बन्द आखिर जिम्मेदार कौन?ये स्कॉलरशिप न केवल भारतीय राज्य के कल्याणकारी चेहरे का प्रतिनिधित्व करती थी, वरन हमारे संविधान की मूल भावना के अनुरूप सामाजिक न्याय को भी आम दलित गरीब छात्रों तक पहुंचाने का कार्य करती थी Read more
।ये स्कॉलरशिप उन दलित छात्रों के लिए लाइफलाइन हुआ करती है, जो अति पिछड़े ग्रामीण पृषठभूमि से आते हैं। एवं जिनके अभिभावक शहरी क्षेत्रों में उनके किराए इत्यादि के लिए उन्हें पैसा भेजने में अत्यंत पूर्ण रूप से अक्षम है.
उत्तराखंड में विगत 4 सालों से गरीब छात्रों की स्कालरशिप बन्द जिम्मेदार कौन? स्कॉलरशिप को अघोषित रूप से बंद कर दिया गया है।राजधनी स्थित उच्च पदस्थ अधिकारियों से संपर्क करने पर पता चला कि केंद्र सरकार द्वारा इस स्कॉलरशिप के लिए राज्य सरकार को जो धनराशि उपलब्ध कराई जाती थी उसे मोदी के नेतृव वाली केंद्र सरकार ने बंद कर दिया है। सबका साथ सबका विकास कहने वाली मोदी सरकार अनुसूचित जाती एवं जनजाति से संबंधित स्पेशल कंपोनेंट प्लानएवम् ट्राइबल सब प्लान में आवंटित बजटीय धनराशि को हायवे सड़क निर्माण,भवन निर्माण आदि में खर्च कर दलित कल्याण का ढिंढोरा पीट रही है। और गरीब दलित छात्रों की स्कॉलरशिप में दी जाने वाली मामूली लेकिन महत्वपूर्ण सहायता को बंद कर उन्हें प्रतिस्पर्द्धा और जीवन दोनों से बाहर करने का काम कर रही है। असल में भाजपानीत केंद्र सरकार चाहती ही नहीं की दलित बच्चे भी मुख्य धारा में सम्मानजनक जीवन जिए यही है इनका सबका साथ सबका विकास…..आज उत्तराखंड के हजारों गरीब छात्रों की छात्रवृति बन्द आखिर जिम्मेदार कौन?सिर्फ एसआईटी बैठा देने से समस्या का समाधान नही हो जाता अगर सरकार की वंचित,और दलित,गरीब,पिछड़े वर्ग की चिंता होती तो 4 साल तक कैसे ही हो छात्रवृति मिल जाती।मगर हुक्मरानों की करनी और कथनी में अंतर साफ नजर आ रहा है।