जय भीम कहने वालों से और संविधान से नफरत क्यों?
क्या यही न्यू इंडिया है?
ज्यों-ज्यों वंचित वर्ग ,जिसको आधुनिक दलित की संज्ञा दी गयी है समाज की मुख्य धारा से जुड़ने की कोशिश कर रहा है।वैदिक कालीन मानसिकता और व्यवस्था से प्रभावित लोग इस वर्ग की न तो तरक्की देखना पसन्द करते हैं,और न ही इनके साथ रोटी -बेटी का सम्बंध बनाना चाहते हैं।आज तक मैं सोचता था कि केवल कम पढ़े लिखे और राजनीतिक लोग ही जातिवाद को बढ़ावा देते हैं ,लेकिन ये मेरा भरम था यहाँ तो भौतिक विज्ञान के विद्वान भी जातिवाद से ज्यादा नफरत अब डॉ0 आंबेडकर ,जय भीम और संविधान से भी करते है ये मुझे हैरान कर गया।
उत्तराखंड में भौतिक विज्ञान प्रवक्ताओं का एक व्हाट्सएप्प ग्रुप है जिसमे मुझे भी जोड़ा गया है।ग्रुप में कई सूचनाएं,और जानकारियां,शेयर की जाती हैं,विभिन्न प्रकार की पोस्ट्स,राजनीतिक पोस्ट भी लोग शेयर करते रहते हैं,विभिन्न त्योहारों पर ,दिवशों पर ग्रेटिंग शेयर की जाती हैं,गुड मॉर्निंग,से लेकर सभी प्रकार के अभिवादन,जिनमे,नमस्कार,जय श्री राम,राम-राम जी,जय भोले शंकर,जय श्री कृष्णा,राधे-राधे आदि सभी अभिवादन होते रहते हैं यहाँ तक कि है प्रभु भी कहते हैं,जिस पर किसी को कोई आपत्ति कभी नहीं हुई।मगर मेरे द्वारा इस ग्रुप में “जय भीम” सेंड हो गया।मैं जय भीम दूसरे ग्रुप में शेयर करना चाह रहा था।मैंने तुरन्त उस पोस्ट को डिलीट भी कर दिया।लेकिन कुछ मिनट बाद ग्रुप में मानो आग की लपटें फैल गयी हों।एक ने लिखा कि ये आपकी सैद्धान्तिक लड़ाई है इसको फिजिक्स ग्रुप में डालकर ग्रुप को गंदा क्यों कर रहे हो और कुछ फिजिक्स भी आती है क्या?इस पर उस प्रवक्ता के पोस्ट पर लाइक और कमेंट की बाढ़ सी आ गयी।कोई लिखता है ये राजनीतिक ग्रुप नहीं है,कोई लिखता है ग्रुप की मर्यादा खत्म कर दी,कोई कहता है ऐसे संकीर्ण लोगों के लिए ग्रुप में जगह नहीं होनी चाहिए।मैं स्तब्ध रह गया, आखिर भारत रत्न,संविधान निर्माता,महान अर्थशास्त्री,समाजशास्त्री,कानूनविद,राजनीतिज्ञ,कई भाषाओं के ज्ञाता,सिंबल ऑफ नॉलेज डॉ0 आंबेडकर के प्रति इस देश के उच्च जाति के हिंदुओं को नफरत क्यों हो गयी है?
डॉ0 आंबेडकर ने ऐसा क्या कसूर कर दिया कि जय भीम कहने वालों से और संविधान से नफरत करने लगे हैं लोग!
कमर मोरादाबादी के निम्न बोल इस पर फिट बैठते हैं।
“अब मैं समझा तेरे रुख़सार पे तिल का मतलब दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है “
धीरे-धीरे ही सही अब सभी घटनाक्रम याद आ रहे हैं कि किस तरह डॉ0 अम्बेडकर के साथ-साथ भारतीय संविधान पर भी हमले हो रहे हैं।9 अगस्त 2018 की घटना इसकी सत्यता को प्रमाणित कर देती है घटना इस प्रकार है –
संविधान से इतनी नफरत क्यो?संविधान पर आग देश को 21वी सदी में नहीं गुलामी की ओर ले जाएगा।
9 अगस्त को जब पूरा देश अगस्त क्रांति की 76 वीं वर्ष गांठ मना रहा था वीर स्वतन्त्रता सेनानियों को याद कर रहा था।देश भक्ति के गीत बज रहे थे।भारत माता की जय जय कार और बन्दे मातरम के नारों से देश गूंज रहा था।वही दूसरी तरफ हैरान और स्तब्ध करने वाली तस्वीर देश की राजधानी में देखने को मिली ओ भी संसद के बाहर।घटना ऐसी है कि लिखने में हाथ कांपने लगते हैं और बोलने में जुबान लड़खड़ाने लग जाती है
जिस परतन्त्र भारत को संवैधानिक गणतन्त्र बनाने के लिए इस देश के हजारों लोगों ने कुर्बानियां दी थी महज आजादी के 70 साल में ही उनकी सन्तानों को देश का संविधान रास नहीं आ रहा है और उसको जला डालने का देशद्रोही और अक्षम्य अपराध कर डाला है।9 अगस्त को आरक्षण विरोधियों ने विरोध की पराकाष्टा को ही पार कर दिया ।देश के संविधान ने ही इतनी आजादी दी है कि हम संघ बना सकते है,संगठन बना सकते है,अभिव्यक्ति की आजादी मिली है,जुलूस प्रदर्शन करने की छूट मिली है,भाषण देने की इज्जाजत मिली है।उसी संविधान का अपमान और जला डालना इससे बड़ा देश द्रोह और क्या हो सकता है?ये तो भौतिकी की भाषा में लेन्ज का नियम लागू होने जैसा हो गया कि “प्रेरित धारा सदैव उस कारण का विरोध करती है जिससे वह स्वयं उतपन्न हुई हो”जिस संविधान ने हमको इतनी आजादी और स्वाभिमान दिया उसी की हत्या ये कैसा देश प्रेम और राष्ट्र भक्ति का नमूना है?पण्डित नेहरू जी ने कहा था कि “who lives if india dies”जब संविधान को ही खत्म कर दंगे तो फिर मांगे कौन पुरी करेगा,फिर से कोई ब्रिटिश या विदेशी आकर समस्या को हल करेगा?2 अप्रैल 2018 को देश के दलित संगठनों ने भी भारत बंद का आव्हान किया था मगर ऐसी कोई देश विरोधी हरकत नहैं की जिससे हमारा लोकतंत्र कमजोर हो और संविधान की गरिमा को ठेस पहुचे।
एक बात जो विश्लेषण योग्य है आरक्षण विरोधी एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश कर रहे हैं ।पहला ओ आरक्षण लागू होने के लिए डॉ0 आंबेडकर को ही जिम्मेदार ठहराते हैं।और भारतीय संविधान के निर्माता होने के कारण अम्बेडकर और भारतीय संविधान से नफरत करते हैं।आरक्षण विरोधी या अब यूँ कहें कि संविधान विरोधी या देश विरोधी ये क्यों भूल जाते है कि वर्ण व्यवस्था,छुवाछुत,भेदभाव, शोषण,अत्याचार, असमानता,और जातिवाद डॉ0 आंबेडकर ने थोड़ी ही पैदा की है संविधान ने तो इन कलंकों से मुक्ति का मार्ग दिया है भारत को।जिस देश में एक इंसान को पशुवत जीवन जीने को हजारों वर्षों से मजबूर किया गया था,जिस व्यवस्था में नारी और शूद्र को ये कह कर प्रताड़ित किया गया हो-ढोल-गंवार पशु शुद्र और नारी सब ताड़न के अधिकारी,ओ शिक्षा की किताबें पूजनीय हैं!
और जिस संविधान के कारण आज भारतीय महिला देश की राष्ट्रपति तक,प्रधानमंत्री तक पहुच चुकी हैं उसी संविधान पर चिंगारी अफसोस की बात है!ये आग सिर्फ उन कागज के पन्नो पर नही है जिस पर संविधान की लाइनें लिखी गयी है,ये आग देश की करोड़ों महिलाओं ,वंचितों,गरोबो,और देश के गणतन्त्र को लगाई गई है ।देश के प्रधान मंत्री बार -बार कहते है कि बाबा साहेब की संविधान की बदौलत मैं यहां तक पहुँचा हुँ।संविधान नहीं होता तो एक चाय बेचने वाला देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता था”।लड़ाई संवैधानिक है व्यक्तिगत नहीं ।देश में दलितों के साथ आये दिन जो घटनाएं घटित हो रही है अब धीरे धीरे समझ में आ रही है कि ओ जातिवाद पर कम आरक्षण के कारण ज्यादा हो रहे हैं तभी तो दलितों के घर जलाये जा रहे है,उनको जिंदा जलाया जा रहा है, दलित महिलाओं की इज्जत लूटी जा रही है,कही स्कूल जाने से ही रोका जा रहा है।दलितों के साथ-साथ देश में महिलाएं भी आरक्षण विरोधियों के निशाने पर है, क्योंकि भारतीय संविधान ने महिलाओं को भी बराबरी का हक प्रदान किया है और लिंग के आधार पर भेदभाव गैरकानूनी है ।
कुल मिलाकर जो भी वंचित तबका सदियों से हिंदुत्व के हिन्दूपन का शिकार रहा था संविधान उसको हिन्दूपन के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकाल लाया है शायद यही कारण है कि जो लोग मनु के मंत्रों से खुश थे भारतीय संविधान और डॉ0 आंबेडकर उनको आँख का कांटा लगने लगा है। इसी लिए जय भीम कहने वालों से फरत करने लगे हैं। आज उपद्रवियों ने संविधान जलाई कभी संसद को और कभी न्यायालय को भी निशाना बना सकते हैं ।अफजल गुरु से क्या कम हरकत की है इन लोगों ने।एक अफजल ने संसद पर हमला किया तो स्वदेशी आतंकवादियों ने पूरे लोकतंत्र और भारत की आत्मा पर ही हमला किया है जिसका परिणाम अफजल गुरु से कम नहीं हो सकता और शायद होना भी नहीं चाहिए।