हरियाली का खाक बनाकर
जब बीती थी सर्दी
बसंत ऋतु ने आकर
पुनः नई जवानी भर दी।
खिलते फूलों की कलियों पर,
जब भंवरा मंडराता है,
हरे पेड़ों की डाली से
कोयल जब गाती है
बैठे बैठे खो जाता हूं जब इनकी बोली सुनता हूं
इन सब में से सबसे मीठी बचपन की यादें पाता हूं।।
ख़ुशियाँ आयी पल भर में चली गयी,
गमों की बस्ती सदा आबाद रही।
मैंने क्या नहीं किया बेरहम,
तेरी मुस्कराहटों के खतिर,
तू जमाने भर मुझको रुलाती रही।
मैं जानता था कि,
मेरी वज्म में तू,नहीं है लेकिन,
मेरी निगाहें फिर भी
तुझे ढूंढती रही।।
ये मैंने सोचा न था।
दुश्मन होते हैं गैर सभी
ऐसा भी नहीं,
कातिल अपना ही होगा ये,
मैंने सोचा न था।
ताउम्र जिसके प्यार में केे कैद रहा था मैं
मझधार में रिहा कर देगी यह मैंने सोचा न था ।
कुछ पल तो पहले बड़ी
हसीन लगती थी दुनियां,
जीने की चाह और जगाती थी जिंदगी,
खौफ लगता था मौत से
अब इतनी जल्दी जीने की चाह मिट जाएगी
यह मैंने सोचा न था।
जंग तो होनी थी खंजर तो चलने ही थे
वार सीने में होता तो कोई गम न था
कातिल पीठ पर करेगा वार ये मैंने सोचा न था।।