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Iphuman
दास्ताँ ए जूता
इज्जत तो मेरी कुछ नहीं ,
क्योंकि मैं पैरों का जूता हूं. सस्ता चाहे महंगा हूं .
मैं हिफाजत करता हूं उनकी, जो मुझे पहनते हैं.
सदियों से पैरों तले मैं दबता चला आया हूं .
हमेशा मालिक के कदमों तले घिसते चला आया हूँ
धंसता चलता हूं कभी कीचड़ में,फंसता चला जाता हूँ कभी में कांटों में.
मैं दबता हूँ, मैं कुचला जाता हूँ,मैं घिसता हूँ, मैं पिटता हूँ,
कभी न मैं रोता हूँ क्योंकि,
मैं पैरों का जूता हूँ.
गालियों में शुमार हूँ मैं,और
चापलूसी में भी भरमार हूँ.
मैं न छोटा,न बड़ा देखता हूँ .
जो भी मुझे अपनाना है.
मैं काम सभी के आता हूँ.
सब से समभाव रखता हूँ.
क्योंकि-मैं पैरों का जूता हूँ.