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By. Sochbadlonow

फिट इंडिया में अनफिट गांधी और अम्बेडकर  सिर्फ राजनीतिक जीत या चुनावों में जीत ही अहम नहीं है। वास्तविक और सच्ची जीत देश को विकट संकट से उबारने और देश की समस्याओं पर विजय पाना भी है। 200 वर्षों की पराधीनता से मुक्त होकर 15 अगस्त 1947 को जो जश्न  उस वक्त  देश ने बनाया होगा शायद ही 73 सालों के आजादी के बाद के दिनों में वैसा जश्न कभी देश ने मनाया हो।आज फिट इंडिया में गांधी और अम्बेडकर की विचारधारा पर हमला हो रहा है।

यह बात अलग है कि हर 5 वर्ष में चुनाव परिणाम आने के बाद राजनीतिक दल जश्न जरूर मनाते हैं, मगर इस जश्न में सिर्फ वोटों का ही रंग नजर आता है। देश ने आजादी के बाद तरक्की नहीं कि ऐसा कहना अनुचित होगा। देश ने कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। हरित क्रांति , नीली क्रांति ,पीली क्रांति के द्वारा हम कई क्षेत्रों में उत्पादन की दृष्टि से विश्व में पहले स्थान पर हैं। भाभा परमाणु अनुसंधान के साथ-साथ विज्ञान और टेक्नोलॉजी को प0 नेहरू ने प्राथमिकताओं में रखा और परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन किया। राजीव गांधी ने सूचना क्रांति और कंप्यूटर की दुनिया से देश को संपन्न कराया ।आज 21वीं सदी में नरेंद्र मोदी देश को कृषि प्रधान से डिजिटल युक्त  बनाने में लगे हुए हैं। अंग्रेजों पर ,पाकिस्तान पर विजय पा चुके हैं, विभिन्न खेलों में हम विश्व चैंपियन बन चुके हैं और आगे भी जीत का सिलसिला जारी रहेगा। चाँद से लेकर मंगल ग्रह तक हम पहुंच चुके हैं, जल्दी ही न्यूक्लियर पावर देशों की सूची में भी शामिल हो जाएंगे।

सफलताओं की लिस्ट भी लंबी है साथ ही समस्याओं और चुनौतियों  भी कम नहीं है। वर्तमान समय में जो विषय सबसे अधिक गंभीर बनता जा रहा है वह दलितों की स्थिति और उत्पीड़न का है। मूर्ति पूजा जिसकी आस्था और धर्म का प्रमुख केंद्र बिंदु रहा हो आज वही आस्थिक और धार्मिक देश के लोग मूर्ति भंजक बनते जा रहे हैं। यह आधुनिकता है या आधुनिकता की आड़ में फिर कोई नया  मार्ग अपनाने का प्रयास है?इंसान ही नहीं पशु प्रेमी समाज जहां सांप की भी पूजा की जाती है और उसको दूध पिलाया जाता है नाग देवता का मंदिर बनाकर उसको पूजा जाता है ,आज वह समाज गांधी और अंबेडकर को जिसमें एक राष्ट्रपिता और दूसरे भारत रत्न हैं ,की मूर्तियों को खंडित कर रहे हैं आखिर क्यों? क्या आज भारत को सत्य और अहिंसा की जरूरत नहीं है ?क्या आज भारत को भगवान बुद्ध की जरूरत नहीं है? क्या आज भारत को संविधान निर्माता और ज्ञान के प्रतीक की जरूरत नहीं है? हम कैसा नया भारत बनाने जा रहे हैं? एक ओर मंदिर की लड़ाई लड़ रहे हैं और और दूसरी ओर मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ रहे हैं ।

     एक ही सफ़ में खड़े हो गये महमूद ओ अयाज,

     न कोई बंदा रहा ,न कोई बंदा नवाज। 

राष्ट्रीय एकता के संबंध में  शायर अल्लाम इकबाल के उपरोक्त कथन की आज सख्त जरूरत है।  देश के प्रांतों से हर रोज कोई न कोई बड़ी खबर और ब्रेकिंग न्यूज़ आती है तो वह सिर्फ दलितों से जुड़ी हुई घटनाओं से संबंधित होती है ।जिसमें या तो उनका उत्पीड़न किया जाता है या उनको गाँव से भगा दिया जाता है। या उनको समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। इतना ही नहीं आज देश में गांधी और अंबेडकर की विचारधारा को भी खंडित करने का एक सिलसिला शुरू हो चुका है। जो आने वाले भारत के भविष्य के लिए एक गंभीर चुनौती का विषय बनता जा रहा है ।आखिर मूर्तिपूजक देश मूर्ति भंजक कैसे हो सकता है? अगर यह समस्या गंभीर नहीं होती तो आज देश में विकास और विश्वास की बात होती मगर आज समाज का हर वर्ग अपनी अपनी प्रतिष्ठा और अपने ही अस्तित्व को बचाने की दौड़ में लगा हुआ है। ऊना घटनाक्रम के बाद एक के बाद एक जिस तरह से वंचित वर्ग और दलित वर्ग के साथ उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही थी तो देश के प्रधानमंत्री  कहने पर मजबूर हो गए थे कि देश के दलितों पर जुल्म करना बंद करो मारना ही है तो मुझे मार दो। इस तरह का बयान किस ओर संकेत करता है? यह सोचनीय प्रश्न है स्वतंत्रा दिवस के  ठीक पहले विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश के प्रधानमंत्री द्वारा ऐसी व्यथा व्यक्त करना आजादी के जश्न को अवश्य ही धूमिल करता है। तो क्या दलितों को अभी भी किसी और आजादी की जरूरत है? अंग्रेजों की शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार और दमनकारी नीतियों के विरुद्ध सभी ने जंग  लड़ी जिसमें दलित भी शामिल थे, आजादी के बाद भी यही शोषण, उत्पीड़न आदि आदि शब्द जारी हैं तो इनसे आजादी किन को मिली?

    दलित, शोषित, पीड़ित और अपमानित  आज भी हो रहा है तो क्या कोई और अंग्रेजीय इस देश को बर्बाद और बदनाम करने में तुली हुई है? पहचान करना जरूरी है क्योंकि हमने इतिहास में कई गलतियां की है और जिसकी कीमत हमें कई शताब्दियों तक विदेशियों की गुलामी झेलनी पड़ी है। हम देश को स्मार्ट और विकसित करने के लिए जापान चीन फ्रांस और अमेरिका आदि देशों से सहयोग तो ले सकते हैं मगर दलितों की समस्या से निपटने के लिए अमेरिका से मदद की गुहार करेंगे क्या?जरा कटु सत्य को समझें कि हम कहते हैं भारत में पाकिस्तान आतंकवाद को फैला रहा है या पाकिस्तान हिंदुस्तान में आईएसआईएस पैदा कर रहा है तो हम क्यों भूल जा रहे हैं कि भारत में जातिवाद भेदभाव अस्पृश्यता और दलितों के खिलाफ अमानवीय दृष्टिकोण कौन कर रहा है। इसके लिए भी क्या किसी बाहरी देश की चाल समझी जाएगी?

  देश में भ्रष्टाचार हो या महिलाओं के साथ भेदभाव बेरोजगारी, भुखमरी की समस्या  सब आजादी के बाद भी जिंदा है और समाज में नफरत फैला रहे हैं तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम और हमारा समाज, हमारी धार्मिक व्यवस्था और हमारी वर्ण व्यवस्था जिम्मेदार है। साथी वोटों और नोटों की राजनीति भी बराबर की हिस्सेदार है और जिम्मेदार भी है। इस सच्चाई को हम सब को स्वीकार करना चाहिए जब तक देश का दलित सिर्फ वोट के लिए यूज होता रहेगा कितने ही नेता और प्रधानमंत्री कह दें कि हमको मजनू की तरह पत्थर मार दो या गोली मार दो दलितों की स्थिति में परिवर्तन की उम्मीद करना बेमानी होगी। दलित हिंदू समाज की खुद बोई गई और पैदा की गई फसल है। इसको आदि से अनंत काल तक ही रखना है या जल्दी काटकर उखाड़ फेंकना चाहिए यह हिंदू धर्म गुरुओं, पुरोहितों ,शंकराकार्यों, गौ रक्षकों और देश को विश्व गुरु बनाने की ओर कार्य कर रहे लोगों को सोचना चाहिए। और यह उनके हाथों से हीसंभव भी है।

    संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 से 35 में मूल अधिकार दिए गए हैं जिनमें लिंग, जाति धर्म, भाषा, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव या असमानता को दंडनीय  बनाया गया है, लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री जी को दलितों के लिए हो रहे इस प्रकार के घटनाक्रम के लिए अवश्य ही कुछ आह्वान करना चाहिए । और कैशलेस इंडिया,डिजिटल इंडिया तथा फिट इंडिया की तर्ज पर क्विट इंडिया  कास्टीज्म की पहल भी करनी चाहिए।

विचारधाराओं से ही समाज में परिवर्तन होता है और विचारधारा ही क्रांति पैदा करती है, लेकिन आज वह कौन सी विचारधारा है जो गांधी और अंबेडकर की मूर्तियों को खंडित कर इस देश से गांधी की सत्य और अहिंसा की विचारधारा को दफना देना चाहती है।क्या फिट इंडिया में  गांधी और अंबेडकर अनफिट लगने लगे हैंं?  क्या भारतीय संविधान के जनक डॉ भीमराव अंबेडकर की विचारधारा को मिटा देना चाहते हैं, यह मूर्ति खंडित नहीं यह देश से एक ऐसी विचारधारा को खत्म करने का षड्यंत्र है जो देश को प्रगति के पथ पर नहीं वरन विनाश के पथ पर ले जाएगा .सभ्य समाज के नागरिकों के लिए ऐसी  घटनााएँ शर्मनाक हैं।

 

आई0पी0 ह्यूमन

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