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भारत में जातिगत जनगणना के आधार और आवश्यकता

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विनोबा भावे ने कहा था कि -“जाति वह है जो जाती नहीं” वास्तव में भारतीय इतिहास ही नहीं शास्त्रों महाकाव्य से ही जाति और जाति विशेष व्यक्तियों का उल्लेख है ।कालातीत में जो जातियां उस काल और युग में रही होंगी , कि अवश्य ही आज के समाज से कहीं बदतर हालत में रही होंगी .जाति वह परछाई है जो पूरी सामाजिक व्यवस्था में छाई है.या यूं कहा जाए कि जाति ही भारत में राजनीति करना सिखाती और जाति ही समाजशास्त्र को पढ़ाती है. जाति से ही वैदिक काल है, महाकाव्य काल है और जाति से ही प्राचीन से लेकर आधुनिक इतिहास के पन्ने भरे हुए हैं.जब सब कुछ जाति के आधार पर ही चलता आ रहा है तो फिर जातिगत जनगणना के आधार आंकड़े  पेस करने में क्या हर्ज है?

डिजिटल इंडिया दलित भारत?

कैसे बनेगा भारत विश्व गुरु

आज जब 21वीं सदी के दहलीज पर विश्व खड़ा है ,विकसित राष्ट्र अपनी वैज्ञानिक शक्ति को बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को ताकतवर बनाने में जुटे हैं भारत अपनी जातिगत परिधि से बाहर निकलने की सोच भी नहीं रहा है.,  जाति से इस तरह जकड़े हुए हैं कि मकड़ी भी इस जाले से बाहर नहीं निकल सकती है . एक ओर देश को फिर से ज्ञान गुरु बनाने की बात चल रही है तथा विश्व गुरु की ओर भारत को पहचान दिलाने की बात चल रही है  .सोचने का विषय है कि हम किस तरह का ज्ञान विश्व को दे पाएंगे?

जब जाति के आधार पर वोट बैंक देश मे बन ही चुका है तो जातिगत जनसंख्या के आंकड़े भी सामने आने चाहिए .जिससे साफ तस्वीर सामने आएगी और सरकारों द्वारा जातिगत भेदभाव को कम करने और निम्न जातियों के उत्थान के लिए  जो प्रयास किये गए वो कितने सफल हुए.

1931 में अंग्रेजों ने कराई थी जातिगत  जनगणना

1931 में पहली बार जाति पर आधारित जनगणना हुई थी शायद उसी का परिणाम रहा हो कि अंग्रेजों ने देश के दबे, कुचले ,पिछड़े, वंचित, दलित वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए डॉक्टर अंबेडकर की मांग पर :दलित जातियों को कम्युयनलअवार्ड” दिया था लेकिन गांधीजी और तत्कालीन कांग्रेस पार्टी और कट्टर हिंदूवादी नेताओं ने गांधीजी को कम्युनल अवार्ड का विरोध करने के लिए 100% समर्थन दिया. फलस्वरूप  महात्मा गांधी  ने डॉक्टर अंबेडकर को अवार्ड वापस लेने की चुनौती दे डाली  तथा आमरण अनशन कर अंबेडकर को पूना पैक्ट करने को मजबूर कर दिया.   पूना पैक्ट के जहर को पीकर भी डॉ0 अम्बेडकर ने  देश को विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान दिया .तथा पहले कानून मंत्री बने मगर जातिवाद ने  वहां भी उनका साथ नहीं छोड़ा हिंदू कोड बिल को नेहरू सरकार ने समर्थन नहीं दिया जिस  कारण  उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

   जाति ही है आरक्षण की जननी.

आरक्षण का  तो लोग ढोल पीट -पीट कर विरोध कर रहे हैं मगर आरक्षण की उपज किस आधार पर हुई उस ओर मुंह फेर लेते हैं .सार्थक  बहस के बिना देश का यह ऐसा रोग है जो शायद ही कभी खत्म  हो? वर्ण व्यवस्था इंद्रधनुष के समान है जिसमें सभी रंगों की तरंग दैर्ध्य   अलग-अलग होती हैं.

सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना 2011 में देश के 640 जिलों से प्राप्त की गई सूचना के आधार पर निम्नलिखित तथ्य प्राप्त किए गए –

  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में घरों की कुल संख्या 24.39 करोड़ है.
  • 4.6% ग्रामीण भारतीय परिवार ही आय कर अदा करते हैं.
  • कुल परिवारों का 1.11 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र और 3.57 प्रतिशत निजी क्षेत्र के रोजगार से जुड़ा है.
  • देश में कूड़ा बिनने वालों की संख्या 4.08 लाख है और भिखारियों की संख्या 6.68 लाख है.
  • कुल ग्रामीण जनसंख्या के 56 प्रतिशत लोग भूमिहीन है जिसमे से 70 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 50 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति सम्बंधित हैं.
  • 17.91 करोड़ ग्रामीण परिवारों में 39.39 प्रतिशत लोगों की आय 10000 रुपए प्रति माह से भी कम है.
  • 30.10 प्रतिशत(या 5.39 करोड़) जीविका के लिए फसल की खेती पर निर्भर हैं.
  • 1.14 प्रतिशत(या 9.16 करोड़ रुपये) आकस्मिक श्रम के माध्यम से आय अर्जित करते हैं.
  • 54 प्रतिशत के पास 1 या 2 कमरे के आवास हैं.
  • 5 प्रतिशत सरकार से वेतन प्राप्त करते हैं.
  • 65 लाख परिवार ऐसे हैं जहां किसी वजह से घर में कोई बड़ा सदस्य नहीं है. सारे सदस्य नाबालिग हैं. वहीं 68.96 लाख परिवार ऐसे हैं जिनकी मुखिया महिला थीं

10 साल में पिछड़ी जातियों का कितना हुवा उत्थान 2021 में जातिगत जनगणना जरूरी

अगर  2021 की जनगणना में जाति आधारित जनगणना के आंकड़े प्रकाशित हो जाते हैं तो देश के सामने सच्चाई तो आएगी ही. आखिर आजादी के 70 साल के बाद भी देश के सामाजिक व्यवस्था में किस प्रकार परिवर्तन हुआ है. यह भी सच्चाई  सामने आएगी कि जातियों का वर्गीकरण आर्थिक दशा को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है .जातिगत जनगणना के आंकड़ों से सरकार को भविष्य में नीति निर्धारण में सहायता मिलेगी. यह तय हो पाएगा कि देश का कौन सा वर्ग  अभी भी मुख्यधारा से दूर है .तथा विभिन्न क्षेत्रों में देश के जातिगत निवास करने वालों की क्या दशा है .साथ ही शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के अवसरों के लिए भावी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी यह सच है कि इन आंकड़ों  का विभिन्न राजनीतिक दल अपना चुनावी मुद्दा बनाएंगे मगर सच्चाई तो सच्चाई होगी चाहे मुद्दा बने या ना बने नीतियां अवस्य बननी चाहिए.

Ip human

I am I.P.Human My education is m.sc.physics and PGDJMC I am from Uttarakhand. I am a small blogger

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