संगठन के इतिहास का सबसे भ्रमित कार्यकाल — सवाल, पीड़ा और उम्मीद
एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन उत्तराखंड के लम्बे संघर्षशील इतिहास में शायद ही कभी ऐसा कार्यकाल देखने को मिला हो, जहाँ इतनी भ्रम की स्थिति, अनिश्चितता और संगठनात्मक असंगति साफ़–साफ़ दिखाई दी हो। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इसका दोष किसी एक व्यक्ति पर नहीं डाला जा सकता। यह पूरे संगठन का सामूहिक फेलियर है — एक ऐसा फेलियर जिसने आम सदस्यों के मन में अविश्वास की गहरी रेखा खींच दी है।
पिछले तीन वर्षों का कार्यकाल किसके लिए उपलब्धियों से भरा रहा, यह वही लोग बेहतर जानते होंगे जिन्हें व्यक्तिगत रूप से लाभ मिला होगा। लेकिन पूरे संगठन के स्तर पर देखा जाए, तो सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि प्रांतीय अधिवेशन जैसे महत्वपूर्ण आयोजन में इतना विलंब, इतना संशय और इतना भ्रम क्यों पैदा हुआ?
संगठन के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
अध्यक्ष की परिस्थिति और संगठन का इंतज़ार
प्रांतीय अध्यक्ष जी की पत्नी के अचानक स्वास्थ्य खराब होने की सूचना सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आई। संगठन के सभी पदाधिकारी, सदस्य और साथी उनके साथ खड़े थे, उनका हौसला बढ़ा रहे थे — जैसा कि होना भी चाहिए।
लेकिन इस बीच एक बहुत बड़ा सवाल उठता है—
जब 17–18 नवंबर की अधिवेशन तिथि स्वयं अध्यक्ष जी द्वारा पत्र जारी करके तय कर दी गई थी,
तो निदेशालय द्वारा अधिसूचना जारी होने के बाद भी जिलों को अवकाश का आदेश क्यों नहीं भेजा गया?
क्या यह सिर्फ प्रशासनिक चूक थी?
या फिर कहीं कोई व्यक्तिगत या राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस पूरी प्रक्रिया को प्रभावित कर रही थी?
अगर ऐसा है, तो यह न सिर्फ संगठन के साथ, बल्कि पूरे वंचित बहुजन समाज के साथ एक बहुत बड़ा धोखा होगा।
मेजबान जिला ही अधिवेशन के लिए तैयार नहीं — तालमेल की कमी उजागर
इस पूरी स्थिति में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि चमोली जनपद, जिसे अधिवेशन की मेजबानी दी गई थी, वही इस तारीख को अधिवेशन करवाने में असमर्थ था। कारण —
17–18 नवंबर को गोचर मेला लगना!
क्या शुरू में भौगोलिक परिस्थितियों, स्थानीय कार्यक्रमों और व्यवहारिक पक्षों पर कोई विचार–विमर्श नहीं किया गया?
क्या इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने से पहले एक बार भी यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि उस तारीख को अधिवेशन संभव भी है या नहीं?
ये सारी बातें इस बात का प्रमाण हैं कि संगठन में तालमेल की भारी कमी है।
आम सदस्य ठगा हुआ महसूस कर रहा है
आज संगठन का आम सदस्य अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
कई साथी मुझसे भी पूछ रहे हैं कि “आप भी कार्यकारिणी में थे, आपने क्या किया?”
इसका जवाब मैं साफ़-साफ़ दे देता हूँ—
मैंने 6 महीने के अंदर ही इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि मुझे समझ आ गया था कि संगठन दिशाहीन और विचारहीन होता जा रहा है। अपने मूल उद्देश्य, मूल मिशन और मूल संघर्ष से भटक रहा है।
आज स्थिति यह है कि हम अपने ही सदस्यों को जवाब देते-देते थक जा रहे हैं।
हमारी नज़रों में सवाल हैं, दिल में पीड़ा है और संगठन के भविष्य को लेकर चिंता है।
नेतृत्व से विनम्र अपील — उम्मीद अभी भी बाकी है
मेरी विनम्र अपील है कि प्रांतीय नेतृत्व तुरंत इस पूरे संशय, भ्रम और अव्यवस्था से पर्दा हटाए।
यह संगठन यूँ ही इस मुकाम तक नहीं पहुँचा है।
2007 से लेकर आज तक हमारे मिशनरी साथियों ने खून–पसीना बहाया है, सड़कों पर संघर्ष किया है, अपमान झेले हैं, तब जाकर यह मंच तैयार हुआ है।
आज वही साथियों की मेहनत दांव पर लगी हुई है।
अगर अभी भी समय रहते नेतृत्व आगे आकर पारदर्शिता, संवाद और जिम्मेदारी दिखा दे—
तो न सिर्फ संगठन मजबूत होगा, बल्कि हमारे समाज का भरोसा भी वापस लौटेगा।
क्योंकि संगठन व्यक्ति से बड़ा होता है,
और मिशन पद से बड़ा होता है।
