1990 के दशक के बाद भारत की राजनीति में बदलाव का युग शुरू होता है.जोड़-तोड़ और गठबंधन का दौर शुरू होता है.साथ ही इस दौर में नेतागण कहते थे ,कि हम 21वीं सदी का भारत बनाना चाहते हैं.तब हम बहुत छोटे हुआ करते थे और सोचते थे कि ये 21वीं सदी का भारत कैसे बनाएंगे ?क्या कोई ऐसा मन्त्र होगा जो नया भारत बनायेगा या कोई ऐसा यंंत्र होगा जिसकी मदद से हम नई सदी का भारत बना सकेंगे.कई ऐसी बातें मन में उठती रहती थी.देेखते-देखते आज हम 21वीं सदी के द्वार पर खड़े हो चुके हैैं.लेकिन अभी भी मन में प्रश्नों की भरमार कम नही.
मानव उत्तपत्ति का सिद्धांत और 21वीं सदी का भारत।
मानव की उत्तपत्ति के सम्बंध में दो मत विद्यमान हैं।जिसमें एक ओर विश्व का वैज्ञानिक शोध और सोच शामिल है और दूसरा मत भारतीय शास्त्र। एक ओर डार्विनवाद ,स्टैनले मिलर और big-bang-theory है तो दूसरी तरफ यह मान्यता कि भारत के प्रथम राजा मनु स्वयंभू थे मनु का जन्म सीधे ब्रह्मा से हुआ था और वह अर्धनारीश्वर थे ।उनके नारी मय आधे शरीर से दो पुत्रों और तीन पुत्रियों का जन्म हुआ जिनसे मनुष्यों की वंश परंपरा चली उनमें से एक का नाम पृथु था,जिनका पृथ्वी के प्रथम नरेश के रूप में अभिषेक हुआ उन्हीं के नाम पर भूमि का नाम पृथ्वी पड़ा ।मनु के 9 पुत्र थे जिनमें से सबसे बड़ा पुत्र अर्धनारीश्वर था। इसलिए उसके दो नाम थे -इल और इला ।इस पुत्र से राजपरिवार की दो मुख्य शाखाओं का जन्म हुआ, इल से सूर्यवंश का और इला से चंद्रवंश का (रोमिला थापर- भारत का इतिहास पृष्ठ संख्या 23)।
आज 21वीं सदी का भारत की संकल्पना की जा रही है, यहां कुछ बातों को गौर करने की जरूरत है तथा यह समझना जरूरी है कि हम किस तरह का 21वीं सदी का भारत बनाना चाहते हैं। वैज्ञानिक भारत या वैदिक भारत, या सिर्फ ऐतिहासिक भारत ,या पौराणिक भारत, या विशुद्ध हिंदुस्तान।
ये है 21 वीं सदी का भारत!TECHNOLOGY V/S CASTTLOGY!जानें तैयारी और 5 BIG बाधाएं
समाज को आध्यात्म की भी जरूरत होती है और विज्ञान की थी। मगर ऐसा आध्यात्मिक प्रगति में बाधक हो सकता है जो सिर्फ मरने के बाद स्वर्ग और नर्क का ही पाठ पढ़ाए। भारत कभी विश्व गुरु हुआ करता था सोने की चिड़िया हुआ करती थी ऐसा हमको बचपन से रटाया गया है ।कई पीढ़ियां गुजर गई इसके प्रमाण उपलब्ध न हो सके न कोई जश्न। 15 अगस्त का हर साल गुलामी से मुक्ति का जश्न मनाया जाता रहा है और आगे भी जारी रहेगा रहना भी चाहिए आजादी का 100वां सूरज अभी उगा भी नहीं ,कष्टों का दौर अभी खत्म हुआ नहीं, समाज अभी वर्तमान में जागा ही नहीं है ।
आज फिर भारत को विश्व गुरु बनाने का जिक्र होने लगा है और समय सीमा 2025 तय कर दी गई है। इससे पहले 21वीं सदी का भारत दस्तक देने को है शायद इसीलिए देश में सफाई का अभियान जोरों पर है ।हाथ में झाड़ू थाम कर हो या कलम पकड़कर वर्तमान में गरीबी ,बेरोजगारी ,भुखमरी, भ्रष्टाचार, कुपोषण ,निरक्षरता आदि समस्याओं के ऊपर 2019 में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण करने की योजना या भारत के संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष राज्य को खत्म कर हिंदू राष्ट्र बनाना ,या यूं समझा जाए कि वंदे मातरम अनिवार्य कर देना तथा दलितों और पिछड़ों के संवैधानिक अधिकारों को धीरे धीरे माननीय सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से खत्म कर देना ।
आज संचार क्रांति के द्वारा भारत डिजिटल इंडिया में तब्दील करने की कोशिश भी हो रही है कैशलेस लेनदेन की ओर अग्रसर होने को है ।बुलेट ट्रेन का आगमन होने को है। क्या इन सारी साइंस की टेक्नोलॉजी की चाबी हम भारतीयों के हाथ में है ?साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पश्चिमी देशों पर हमारी निर्भरता टिकी है हमारा साहित्य बेशक बेमिसाल है मगर शिक्षा और संस्कारों में अंधविश्वास और पाखंड अभी भी कूट कूट का भरा पड़ा है ।
यहां” इ ” फार इमली या इंद्र पढ़ाया जाता है तो यंत्रों के देश में “इ” फार इंजन या इलेक्ट्रान पढ़ाया जाता है। जापान के किशोर और युवा खेल खेल में रोबोट बनाना सीखते हैं तो हमारे देश के बच्चे खेल-खेल में पहले धनुष बाण बनाना सीखते हैं और बड़े होकर पुतले बनाने की कला में माहिर हो जाते हैं और हमारे युवा पीढ़ी जिनको विजन 2020 या 21वीं सदी के सपने दिखाए जाते हैं बेस्ट पुतला मेकर का पुरस्कार दशहरा में दिया जाता है। चिंतन के साथ-साथ चिंता भी जाहिर की जाए कि रावण मेघनाथ, कुंभकरण आदि के पुतले बनाकर हम रोबोट बनाने और गॉड पार्टिकल खोजने वाले देशों के समकक्ष कैसे 21वीं सदी में प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे? ऐसा नहीं कि हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी है शास्त्र गवाह है कि बिना गुरु के भी एकलव्य जैसी प्रतिभा निखर कर आयी है ।21वीं सदी का भारत उधार में ली गई तकनीक और उधार में लिए गए कर्ज से बन भी जाए तो बहुत हर्ष की बात नहीं .
विज्ञान और तकनीक में बदलाव के साथ-साथ हमको सामाजिक चुनौतियों से भी निपटना होगा। टेक्नोलॉजी के ऊपर कास्टलॉजी को भूलना होगा। हम तकनीक और उपकरण उधार ले लेंगे, मगर हमारी सोच को बदलने के लिए हमको ही खुद पहल करनी होगी.21वीं सदी में अवश्य ही इस महान भूमि में पशु और नर नारी में फर्क महसूस करने की विचारधारा को भी विकसित करना एक मुख्य बिंदु अवश्य ही होना चाहिए। सरकारों को अभिसारी लेंस की तरह कार्य करना होगा न कि अपसारी लेंस की तरह। वर्तमान युग विज्ञान और तकनीक का युग है जिसमें हम अभी बहुत पीछे हैं सिर्फ साधु-संतों और शंकराचार्य की फौज खड़ी कर विश्व गुरु और 21वीं भारत का सपना या ख्वाब देखना दिवा स्वप्न देखने जैसा होगा।