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आजादी के बाद21 वीं सदी का भारत एक सपना
भारत को 20 वीं सदी में 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली.ब्रिटिश कंपनियां भारत को लँगड़ा बनाकर छोड़ गए थे.आजादी के बाद गठित सरकार और 1952 में हुए आम चुनाव के बाद धीरे-धीरे भारत अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता रहा .20 वीं सदी के बाद 21 वीं सदी का भारत बनाने के सपने सरकारों द्वारा दिखाए जाने लगे .
21 वीं सदी में कदम रखने से पहले हमको अतीत में झांकने की भी जरूरत है. ऐसी मान्यता जिसने 21 वीं सदी तक भारत का पीछा नहीं छोड़ा है और कहीं ना कहीं वह भविष्य की संभावनाओं पर ब्रेक का काम कर रहे हैं जानते हैं आज के इस यह बतानेे की आर्टिकल में यह बताने की कोशिश की है कि भारत कीी प्राची मान्यताएं अंधविश्वास रूढ़िवादिता ने किस तरह भारत की प्रगति को बाधित किया है .
आज 21वीं सदी की बात हो रही है 21वीं सदी साइंस और टेक्नोलॉजी केेे विकास के साथ-साथ सामाजिक विभिन्नताओं को मिटाकर बन सकता है. भारत के परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ी चुनौती यह खड़ी हो जाती है की यहांं एक ओर technology की ओर धीरे धीरे कदम बढ़ रहे हैं तो,वहीं दूसरी ओर Casttology(जाति शास्त्र), जाति व्यवस्था भी साथ साथ चल रही है.
ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि घिसी-पिटी सामाजिक व्यवस्थाएं,अंधविश्वास, रूढ़िवादिता के विकास से भारत का सामाजिक ताना-बाना एक सूत्र में बंध पाएगा? ऐसे कई प्रश्न है जो आज के आर्टिकल में हम विश्लेषण करनेे का प्रयास करेंगे.
श्रद्धा ,मनु और ब्रह्मा की थ्योरी
मानव की उत्पत्ति के संबंध में दो सिद्धांत विद्यमान है. पहला विश्व का वैज्ञानिक शोध और प्रयोग शामिल है ,दूसरा भारतीय शास्त्र और ब्रह्म कासिद्धांत. एक और डार्विन, चार्ल्स मार्क स्टैनले मिलर, और big-bang-theory है ,तो दूसरी तरफ यह मान्यता कि भारत के प्रथम राजा ‘मनु स्वयंभू’ थे. मनु का जन्म सीधे ब्रह्मा से हुआ था और वह अर्धनारीश्वर थे .उनके नारी माय आधे शरीर से दो पुत्रों और तीन पुत्रियों का जन्म हुआ .जिनसे मनु की वंश परंपरा चली उनमें से एक का नाम पृथु था, जिनका पृथ्वी के प्रथम नरेश के रूप में अभिषेक हुआ .उन्हीं के नाम पर भूमि का नाम पृथ्वी पड़ा. मनु के 9 पुत्र थे, जिनमें से सबसे बड़ा पुत्र अर्धनारीश्वर था. इसलिए उनकी दो नाम थे इल और इला.
इस पुत्र से राजपरिवार की दो मुख्य शाखाओं का जन्म हुआ. इल से सूर्यवंशी का और इला से चंद्रवंश का’. (रोमिला थापर भारत का इतिहास पृष्ठ 23). आज 21 वीं सदी के भारत की संकल्पना की जा रही है, यहां कुछ बातों को गौर करने की जरूरत है, तथा यह समझना जरूरी है कि हम किस तरह का 21 वीं सदी का भारत बनाना चाहते हैं? वैज्ञानिक भारत या वैदिक भारत ,या सिर्फ ऐतिहासिक भारत, या पौराणिक भारत या विशुद्ध हिंदुस्तान. समाज को आध्यात्म की भी जरूरत होती है और विज्ञान की भी. मगर ऐसा आध्यात्म भी प्रगति में बाधक हो सकता है जो सिर्फ मरने के बाद स्वर्ग और नर्क का ही पाठ पढ़ाये.
भारत कभी विश्व गुरु हुआ करता था, सोने की चिड़िया हुआ करती थी, ऐसा हमको बचपन से रटाया गया है. कई पीढ़ियां गुजर गई इसके प्रमाण उपलब्ध न हो सके, और न कोई चमत्कार. हां 15 अगस्त को हर साल गुलामी से मुक्ति का जश्न जरूर मनाया जाता रहा है और आगे भी जारी रहेगा और रहना भी चाहिए . आजादी का 100 वां सूरज अभी उगा भी नहीं ,कष्टों का दौर अभी खत्म हुआ नहीं, समाज अभी वर्तमान में जागा ही नहीं है.इसी उधेड़बुन में आज फिर भारत को विश्व गुरु बनाने का जिक्र होने लगा है, और समय सीमा 2025 तक तय की गई है .इससे पहले 21वीं सदी का भारत दस्तक देने को है शायद इसलिए देश पर सफाई का अभियान जोरों पर है चाय हाथ में झाड़ू थामकर हो या कलम पकड़कर.
वर्तमान में गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, कुपोषण निरक्षरता आदि समस्याओं के ऊपर कोरोना महामारी ने विश्व पटल पर भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल कर रख दी है. 21 वीं सदी के मुहाने पर खड़ा भारत आज एक- एक पल सांसों का मोहताज हो रहा है.
क्या यही तैयारी है 21 वीं सदी का भारत बनाने की
देश में व्याप्त तमाम समस्याओं के बावजूद विश्व गुरु बनने और 21वीं सदी का नया भारत बनाने की कल्पना एक सकारात्मक सोच हो सकती है ,और एक अच्छा प्रयास हो सकता है .मगर जिस तरह से इसकी बुनियाद रखी जा रही है कहीं न कहीं 21वीं सदी के भारत की इमारत जब खड़ी होगी तो इसके ढहने का खतरा भी पल- पल बना रह सकता है.
अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण करने, भारत के संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष राज्य को खत्म कर हिंदू राष्ट्र बनाना, या यूं समझा जाए कि वंदे मातरम अनिवार्य कर देना, तथा दलितों और पिछड़ों के संवैधानिक अधिकारों को धीरे-धीरे माननीय सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से खत्म कर देना क्या यही 21वीं सदी की नींव बनने जा रही है?
आज संचार क्रांति के द्वारा भारत को डिजिटल इंडिया में तब्दील करने की कोशिश हो रही है. कैश-लेस लेन-देन की ओर अग्रसर होने को है. बुलेट ट्रेन का आगमन भी शायद हो जाए क्या इन सारी साइंस की टेक्नोलॉजी की चाबी हम वैदिक भारतीयों के हाथ में है? साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पश्चिमी देशों पर हमारी निर्भरता टिकी हुई है.
हमारा साहित्य बेशक बेमिसाल है. मगर शिक्षा और संस्कारों में अंधविश्वास और पाखंड का बीज कूट कूट कर भरा पड़ा है. यहां ‘इ’ for इमली या इंद्र पढ़ाया जाता है ,तो यंत्रों के देश में E for engine या इलेक्ट्रान पढ़ाया जाता है. जापान के बच्चे और युवा खेल खेल में रोबोट बनाना सीखते हैं, तो हमारे देश के बच्चे खेल-खेल में पहले धनुष बाण बनाना सीखते हैं और बड़े होकर पुतले बनाने की कला में माहिर हो जाते हैं. और हमारी युवा पीढ़ी जिनको विजन 2020 या 21 वी सदी का भारत बनने के सपने दिखाए जाते हैं उनको रामलीला के बाद बेस्ट पुतला मेकर का पुरस्कार देकर खुश कर दिया जाता है.
चिंतन और मनन का विषय भी है की रावण ,मेघनाथ कुंभकरण, आदि के पुतले बनाकर हम रोबोट बनाने और गॉड पार्टिकल खोजने वाले देशों के साथ कैसे 21वी सदी का भारत निर्माण कर सकते हैं? ऐसा नहीं कि हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी है, शास्त्र गवाह है कि बिना गुरु के भी एकलव्य जैसी प्रतिभा निखर कर आई है.
21 वीं सदी का भारत उधार में ली गई तकनीक और उधार में लिए गए कर्ज से बन भी जाए तो बहुत हर्ष की बात नहीं .विज्ञान और तकनीक में बदलाव के साथ-साथ हम को सामाजिक चुनौतियों से भी निपटना होो को ऊपर रखना होगा और काट लो जी को भूलना होगा हम तकनीक और उपकरण उधार ले लेंगे मगर हमारी सोच को बदलने के लिए हमको ही खुद पहल करनी होगी.
ये भी देखें–https://sochbadlonow.com/bharat-ke-samvidhan-ka/
21 वीं सदी में अवश्य ही इस महान भूमि में पशु और नर -नारी में फर्क महसूस करने की विचारधारा को भी विकसित करना एक मुख्य बिंदु अवश्य होना चाहिए. सरकारों को अभिसारी लेंस की तरह कार्य करना होगा ना कि अपसारी लेंस की तरह.
वर्तमान युग विज्ञान और तकनीक का है जिसमें हम अभी बहुत पीछे हैं सिर्फ साधु-संतों और शंकराचार्य की फौज खड़ी कर विश्व गुरु और 21 वीं सदी का भारत बनाने का ख्वाब देखना दिवा स्वप्न देखना जैसा प्रतीत होता है.