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आज के इस लेख में हम ‘मन की अवस्थाएं’ क्या होती हैं,और ये कितने प्रकार की होती हैं,पर चर्चा करने वाले हैं .
मन क्या है(What is mind)
मन को एक व्यक्ति के बौद्धिक या मानसिक संकायों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। मानव मन की अवस्थाएं संज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रियाओं के समूह को संदर्भित करता है। जिसमें धारणा, स्मृति, तर्क (कार्यकारी कार्य) आदि जैसे कार्य शामिल हैं। न्यूरॉन्स कैसे सक्रिय होते हैं और मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों से जुड़े होते हैं, इस पर निर्भर करते हुए, हमारे मानसिक कौशल अधिक होंगे या कम कुशल.
मन कैसे कार्य करता है(how the mind works)’बीटा अवस्था’
मन बहुत सूक्ष्म विद्युत तरंगों द्वारा काम करता है। उस यांत्रिक प्रक्रिया को समझ लेना है। अब इस दिशा में खोज करने वाले कहते हैं कि मन चार अवस्थाओं में काम करता है। साधारण जाग्रत मन काम करता है अठारह से लेकर तीस आवर्तन प्रति सेकेंड के हिसाब से—यह मन की ‘बीटा’ अवस्था है। अभी तुम उसी अवस्था में हो, जाग्रत अवस्था में, दैनंदिन काम करते हुए।आइए जानते हैं तीन और ‘मन की अवस्थाएं‘क्या हैं।
मन की अवस्थाएं क्या हैं?(What are states of mind?)
मन के हारे हार सदा रे
मन के जीते जीत
मत निराश हो यू
तू उठ,ओ मेरे मन के मीत।।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की उपरोक्त पंक्तियाँ मन के विषय में बहुत कुछ प्रकाश डालती हैं।अर्थात मन ही मनुष्य के अंदर का साफ्टवेयर है जो उससे कार्य कराता है।
मन की दूसरी अवस्था ‘अल्फा’ (second state of mind
‘alpha’)

उससे ज्यादा गहरे में है द्वितीय अवस्था—’अल्फा’। कई बार, जब तुम कुछ नहीं कर रहे होते, निष्क्रिय होते हो—बस विश्राम कर रहे होते हो सागर—तट पर, कुछ नहीं कर रहे होते, संगीत सुन रहे होते हो, या गहरे डूब गए होते हो प्रार्थना में या ध्यान में—तब मन की सक्रियता गिर जाती है. अठारह से तीस आवर्तन प्रति सेकेंड से वह करीब चौदह से अठारह आवर्तन प्रति सेकेंड तक आ जाती है। तुम सजग होते हो, लेकिन निष्कि्रय होते हो। एक गहन विश्राम तुम्हें घेरे रहता है।
जो लोग गहरे ध्यान की मुद्रा में होते हैं ,तब वे मन की दूसरी अवस्था ‘अल्फा’में उतर आते हैं।
संगीत सुनते हुए भी यह घट सकती है। वृक्षों को देखते हुए, चारों तरफ फैली हरियाली को देखते हुए भी यह घट सकती है। कुछ विशेष न करते हुए बस मौन बैठे हुए भी यह घट सकती है। और एक बार तुम जान लेते हो इसका ढंग, तो तुम मन की क्रिया को शिथिल कर सकते हो; तब विचार बहुत भाग—दौड़ नहीं करते। वे चलते हैं, वे होते हैं वहां, लेकिन वे बड़ी धीमी गति से चलते हैं, जैसे बादल तैर रहे हों आकाश में—वस्तुत: कहीं जा नहीं रहे, बस तैर रहे हैं। यह दूसरी अवस्था, ‘अल्फा’ अवस्था, बड़ी कीमती अवस्था है।

मन की तीसरी अवस्था ‘थीटा'(Third state of mind ‘Theta’)
इस दूसरी के पीछे होती है तीसरी अवस्था, सक्रियता और भी कम हो जाती है। वह अवस्था ‘थीटा’ कहलाती है—8 से 14 आवर्तन प्रति सेकेंड। यह वह अवस्था है जिससे मनुष्य उस वक्त गुजरता है जब उसको रात में नींद नहीं आ रही होती है, उनींदापन घेरे होता है। तब अक्सर कुछ लोग शराब पी लेते हैं, उस वक्त तुम इसी तंद्रा से गुजरते हो। देखना किसी शराबी को चलते हुए : वह तीसरी अवस्था में होता है। वह बेहोशी में चल रहा है। कहां जा रहा है वह, उसे कुछ पता होता वह क्या रहा है, कुछ स्पष्ट बोध नहीं है। शरीर काम किए जाता है यंत्र—मानव की भांति। मन की सक्रियता इतनी धीमी पड़ जाती है कि वह करीब—करीब नींद की सीमा पर ही होता है।
बहुत गहरे ध्यान में भी यह बात घटेगी—तुम ‘अल्फा’ से ‘थीटा’ में उतर जाओगे। लेकिन ऐसा केवल बड़ी गहरी अवस्थाओं में ही घटता है। साधारण ध्यानी इसका स्पर्श नहीं कर प्राते। जब तुम इस तीसरी अवस्था को स्पर्श करने लगते हो तो तुम बहुत आनंद अनुभव करोगे।
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और सारे शराबी इसी आनंद को उपलब्ध करने की कोशिश कर रहे होते हैं, लेकिन वे चूक जाते हैं, क्योंकि आनंद केवल तभी संभव है यदि तुम इस तीसरी अवस्था में पूरी सजगता से उतरते हो—निष्कि्रय लेकिन सजग। शराबी उस अवस्था तक पहुंचता है, लेकिन वह बेहोश होता है; जब वह वहां पहुंचता है, वह बेहोश होता है। अवस्था मौजूद होती है, लेकिन वह उसका आनंद नहीं ले सकता; उसमें प्रसन्न नहीं हो सकता; उसमें विकसित नहीं हो सकता। सारे संसार में सब तरह के मादक द्रव्यों के लिए आकर्षण इसी ‘थीटा’ अवस्था के आकर्षण के कारण है। लेकिन यदि तुम रासायनिक पदार्थों द्वारा उस तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हो तो तुमने गलत साधन चुना है। व्यक्ति को इस अवस्था तक मन की सक्रियता को धीमा करके ही पहुंचना होगा और सजग बने रहना होगा।
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मन की चौथी अवस्था ‘डेल्टा'(The fourth state of mind ‘Delta’)
मन की चौथी अवस्था है- ‘डेल्टा’ । सक्रियता अब और कम हो जाती है. शून्य से 4 आवर्तन प्रति सेकेंड। मन करीब—करीब रुक गया होता है। ऐसे क्षण होते हैं जब वह शून्य—बिंदु छू लेता है, एकदम रुक गया होता है। यहीं तुम गहरी नींद की अवस्था में डूब जाते हो, जब स्वप्न भी नहीं होते; और इसे ही हिंदुओं ने, पतंजलि ने, बौद्धों ने समाधि कहा है। पतंजलि ने तो वस्तुत: समाधि की यही व्याख्या की है : बोध के साथ गहन निद्रा। केवल एक शर्त है कि सजगता होनी चाहिए।
पश्चिम में, इधर अभी बहुत खोज हुई है इन चार अवस्थाओं के विषय में। वे सोचते हैं कि चौथी अवस्था में सजग रहना असंभव है, क्योंकि वे सोचते हैं कि यह विरोधाभासी है—सजग होना और गहरी नींद में होना। लेकिन यह विरोधाभासी नहीं है। और एक व्यक्ति ने, एक बड़े असाधारण योगी ने, अब इसे वैज्ञानिक ढंग से प्रमाणित कर दिया है। उसका नाम है स्वामी राम। सन उन्नीस सौ सत्तर में में त्रिनगर इंस्टीट्यूट की प्रयोगशाला में उसने वैज्ञानिकों से कहा कि वह मन की चौथी अवस्था में जाएगा—संकल्पपूर्वक। लोगों ने कहा, ‘यह असंभव है, क्योंकि चौथी अवस्था केवल तभी होती है जब तुम गहरी नींद में होते हो और संकल्प काम नहीं करता और तुम सजग नहीं होते।’ लेकिन स्वामी राम ने कहा, ‘मैं करके दिखाऊंगा।’ वैज्ञानिक विश्वास करने के लिए राजी न थे, वे शंका से भरे थे, लेकिन फिर भी उन्होंने प्रयोग करके देखा।
स्वामी राम ने ध्यान करना आरंभ किया। धीरे— धीरे, कुछ मिनटों के भीतर ही वह करीब—करीब सो गया।’ई ई जी’ रेकॉर्ड्स ने, जो उसके मन की तरंगों को अंकित कर रहे थे, दिखाया कि वह चौथी अवस्था में था, मन की क्रिया करीKब—करीब रुक गई थी। फिर भी वैज्ञानिकों को भरोसा न आया, क्योंकि शायद वह सो गया हो, तब तो कुछ सिद्ध हुआ नहीं; असली बात यह है कि वह सजग है या नहीं। फिर स्वामी राम वापस लौट आए अपने ध्यान से, और उसने सारी बातचीत जो उसके आस—पास चल रही थी, वह सब बतलाई—और उनसे ज्यादा अच्छी तरह बतलाई जो पूरी तरह जागे हुए थे।
Conclusion:-आपको ‘मन की अवस्थाएं क्या हैं,और मन की कितनी अवस्थाएं होती हैं ।कैसा लगा अपनी राय अवस्य दें।
संदर्श श्रोत :-ओशो पतंजलि: योगसूत्र–(भाग–3) प्रवचन–58
ध्यान : अज्ञात सागर का आमंत्रण—(प्रवचन—अट्ठहरवां)