छुपकर कोई जाएगा कहाँ

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छुपकर कोई जाएगा कहाँ,

जब हर शहर में मौत है यहाँ।

सोचता हूँ—

पाती बनकर हरियाली में समा जाऊं।

मगर–हरियाली भी सदा रहती है कहाँ ,

जब हर पेड़ पर पतझड़ है यहां।।

सोचता हूँ–

काजल बनकर किसी के नयनों में समा जाऊं।

काजल भी सदा रहता है कहाँ जब

हर आँखों में आँसू है यहाँ।

छुपकर कोई जाएगा कहाँ ,कदम-कदम पर कातिल छुपा है यहाँ।

सोचता हूँ—-

प्यार बनकर ,किसी के दिल में समा जाऊं।

प्यार भी मगर, सदा रहता है कहाँ,

जब मुहब्बत में भी जुदाई है यहाँ।

सोचता हूँ–

धड़कने बनकर किसी के ह्रदय में छुप जाऊं,

मगर–

धड़कनें भी सदा रहती हैं कहाँ ,

जब खुद सांसें भी साथ छोड़ देती हैं यहाँ।

सोचता हूँ——–?

Iphuman B.miscropped-dsc_0007_20160225123314056.jpg

Ip human

I am I.P.Human My education is m.sc.physics and PGDJMC I am from Uttarakhand. I am a small blogger

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