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आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिए संविधान में संशोधन कर कई कानून बनाये गए गए है.आजादी के बाद पहली बार 1950 से 1955 ई0 के बीच जमींदारी व्यवस्था को समाप्त करने के लिए विधेयक लाये गए.और ये विधेयक अधिनियम बनकर चालू हो गए.जिनके परिणामस्वरूप जमींदारी प्रथा का भारत में उन्मूलन हो गया और किसानों एवं राज्य के बीच पुनः सीधा संबंध स्थापित हो गया.भूमि अधिनियम कानून बनने का बाद जमीन पर जोतने वाले का स्वामित्व हो गया.जमींदारों के खेत जोतकर उनके लिए पूंजी अर्जित करने वाले गरीब हलधर किसान जमींदारों के चंगुल से बाहर निकल सके.


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
भारत की प्राचीन विचारधारा के अनुसार भूमि सार्वजनिक संपत्ति थी,इसलिए यह व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं बन सकती थी.महर्षि जैमिनी के अनुसार-“राजा भूमि का समर्पण नहीं कर सकता था क्योंकि यह उसकी संपति नही वरन समाज की सम्मिलित संपत्ति थी.
प्राचीन काल में भूमि की खरीद फरोख्त नहीं होती थी.यूरोपी विद्वान बेडेन पावेल तथा सर जार्ज कैम्पबेल लिखते हैं-‘भूमि जोतने का अधिकार एक अधिकार मात्र ही था और हिंदू व्यवस्था के आधार पर
भूमि नहीं माना गया था.प्राचीन भारत में सामंत ,उपरिक,भोगिक, प्रतिहर तथा दण्डनायक विद्यमान थे-स्वामियों को सैनिक भेजते थे,इन अधिकारियों को वेतन के तौर पर भूमि दी जाती थी.
http://आजादी के बाद भारत की विदेश नीति
भूमि के संबंध में याज्ञवल्क्य का मत:
याज्ञवल्क्य के मतानुसार भूमि के चार हिस्सेदार थे-
- महीपति
- क्षेत्रस्वामी
- कृषक
- शिकमी
सवाल ये उठता है कि भूमि पर स्वत्व अधिकार किसको?राज्य को,कृषक को या किसी मध्यवर्ती वर्ग को .
देश की आजादी के बाद जमींदारी प्रथा पर अंकुश:
देश की आजादी के समय जमीन का मालिकाना हक केवल चंद लोगों के पास ही था.भूमि पर जमींदारों के आधिपत्य होने के कारण किसानों का शोषण लगातार बढ़ता जा रहा था.पुराने भूमि कानून आजादी के बाद सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में बाधक बन रहे थे.साथ ही ग़रीबों, किसानों को भी भूमिपतियों के चंगुल से आजाद होना था,बधुआ मजदूरी पर भी लगाम लगानी जरूरी थी.इन सारी समस्याओं के निदान के लिए भारत सरकार ने भूमि सुधार कार्यक्रम लागू करने की पहल शुरू की.जिसमें दलालों के उन्मूलन,काश्तकारी सुधार,भूमि की चकबंदी तथा प्रति परिवार भूमि का निधार्रण और भूमिहीन लोगों को भूमि का मालिकाना हक दिलाना था.
जमींदारी उन्मूलन अधनियम कब बना?
देश की आजादी के बाद की समस्याओं में जमींदारी प्रथा भी एक प्रमुख समस्या थी.अंग्रेजों ने अपनी वफादारी लिए देश में कई जागीरदार खड़े कर दिए थे,जो ब्रिटिश हुकूमत को मद्दद पहुंचाते थे और देश के गरीबों ,किसानों का शोषण करते थे.इन जागीरदारों को ‘ब्रिटिश सरकार की अतिलालित संतान'(Spoilt child)कहा जाता था.देश की आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिए जमींदारी उन्मूलन कानून 1950 में लाया गया था,जो सरकार का पहला भूमि सुधार कानून था.
राज्यों की पहल:-
आजादी के बाद देश में संविधान लागू होने से पहले ही जमींदारी व्यवस्था के उन्मूलन की पहल शुरू हो गयी थी.बिहार,मद्रास,मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बांबे और असम 1949 में ही जमींदारी उन्मूलन विधेयक ले आये थे.उत्तरप्रदेश को मॉडल राज्य के रूप में लिया गया था. प0 गोविंद वल्लभ पन्त उत्तरप्रदेश जमींदारी उनमूलन समिति केे अध्यक्ष थे.देेेश की आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के अंत के लिए यह पहला अधिनियम था.

जमींदारों का विरोध:
सरकार द्वारा जमींदारी व्यवस्था पर लगाम लगाने के लिए बनाए गए अधिनियमों के लागू होने के बाद देश भर के जमींदारों ने विरोध शुरू कर दिया,जिसकी आसंका नेहरू पहले ही जता चुके थे.देश के विभिन्न राज्यों के जमींदारों ने जमींदारी उन्मूलन कानूनों को कोर्ट में चुनौती देना शुरू कर दिया.पटना हाईकोर्ट ने भूस्वामियों की अपील स्वीकार कर ली.तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसके लिए संविधान में संशोधन किए.
आजादी के बाद पहला संविधान संशोधन 1951 :
संविधान के लागू होने के बाद संपत्ति का अधिकार आर्टिकल 19 और 31 के अंतर्गत मूल अधिकारों की सूची में आता था.आजादी के बाद जमींदारी प्रथा उन्मूलन में कानूनी तौर पर यह अधिनियम आड़े आ रहा था.इसलिए सरकार ने 1951 में आजादी के बाद संविधान में पहला संशोधन किया.जिससे भूसुधार कानूनों और जमींदारी प्रथा के उन्मूलन में इसका अहम योगदान रहा.प्रथम संविधान संशोधन द्वारा संविधान में नौंवी सूची भी जोड़ी गयी .
1955 का द्वितीय संविधान संशोधन:
इस संशोधन द्वारा व्यक्तिगत संपति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत कर सकती है.साथ ही राज्यों को कानून बनाने या किसी की संपति या जमीन का अधिग्रहण करने का अधिकार भी मिल गया.संपत्ति अधिग्रहण किये जाने की स्थिति में न्यायालय राज्य से इसकी क्षति पूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती.इस प्रकार हम देख सकते हैं कि आजादी के बाद जमींदारी प्रथा कितनी बड़ी गंभीर समस्या थी, जिसके उन्मूलन के लिए संविधान लागू होने के एक वर्ष वाद ही संशोधन करना पड़ा था.
जमींदारी प्रथा उन्मूलन से क्या बदलाव आया?
देश की आजादी के बाद जमींदारी प्रथा केअंत के लिए बनाए गए कानूनों के साथ ही ब्रिटिश राज से चले आ रहे कई जन विरोधी व्यवस्थाएँ समाप्त होने लगी देखे-आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के अंत से क्या-क्या बदला
- इस प्रथा के समाप्ति के साथ ही जमींदार,जागीरदार और बिचौलिए जैसे शब्द ही इतिहास बन गए.
- आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के साथ ही खेत जोतने वाले किसान को जमीन पर मालिकाना हक मिल गया.
- भूमि पर हदबन्दी का अधिकार मूल गया।
- जमींदारी प्रथा के अंत से सहकारी तथा सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों को संचालित करने में सहायता मिली.
- भूमि कर कम किया गया,काश्तकारों को सामित्व के अधिकार मिले.
- आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के खत्म हो जाने के बाद बंधुवा मजदूरी पर भी कुछ अंकुश लगाया जा सका .
- भूस्वामियों के राजस्व में भारी कमी आयी,जो राजस्व पहले जमींदारों,भूस्वामियों के पास जमा होता था,अब सरकारी खजाने में जाने लगा.
भूमि व्यवस्था की वर्तमान स्थिति:
मुगल काल से लेकर ब्रिटिश काल तक भारत में भूमि के स्वमित्व के लिए कई व्यवस्थाएँ बनाई थी.हर काल में गरीब और किसान ही शोषण का शिकार हुवा है.आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के लिए कानून तो बन गए ,मगर जमीन की खरीद फरोख्त के लिए एक संगठित आपराधिक प्रवृत्ति के लोग फिर से पनपने लगे ,जिनको अब भूमाफियाओं के नाम से जाना जाता है.गरीबों की जमीन को जबरन कब्जाना, षड्यंत्र करके सरकारी भूमि का अधिग्रहण करना आज आम बात हो चुकी है.ये लिखने में कोई संकोच नहीं कि-पहले जमींदारों को राजा का आश्रय प्राप्त होता था ,और आज राजनेताओं का हाथ भूमाफियाओं के ऊपर है.भारत में आज भी करोड़ो लोग भूमिहीन हैं,उनके पास सर छुपाने को छत नहीं है,ऐसे में उनके लिए आजादी के क्या मायने हैं?
आजादी के बाद जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिए जिस प्रकार के कदम सरकार ने उठाये गए थे,भूमाफियाओं के अंत के लिए भी उठाने चाहिए.
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