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बुद्ध की शिक्षाओं में आष्टांगिक मार्ग का महत्व (Budhha Eight fold theory)
बुद्ध की शिक्षाओं में आष्टांगिक मार्ग का महत्व(Budhha Eight fold theory) आज इसी पर फोकस किया गया है।भगवान बुद्ध ने संसार के जीवों के कल्याण के लिए अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत कर दिया। राज घराने में पैदा होकर ,राजकुमार के साही ठाट -बाट को ठोकर मारकर वे किस सत्य की खोज में निकल पड़े।आज के इस आर्टिकल में बताने वाला हूँ।बुद्ध ने मनुष्य को जो सही रास्ता दिखाया वो था मध्यममार्ग ।और इस मध्यम मार्ग को आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण कर मनुष्य अपने दुःखों से मुक्ति पा सकता है।उन्होंने जो चार आर्य सत्य बताए वही इस जीवन की असली हकीकत है।
बुद्ध की शिक्षाएं समस्त प्राणी जगत के उद्धार के लिए हैं।कई वर्षों की घोर साधना के बाद बुद्ध ने आठ सूत्र दिए हैं,उनको आष्टांगिक मार्ग(Eight fold theory)कहा जाता है।आइए जानते हैं क्रमबद्ध तरीके से बुद्ध की शिक्षाओं में आष्टांगिक मार्ग का महत्व (Budhha Eight fold theory) ..
भगवान बुद्ध ने जीवन की अतियों से बचने वाला माध्यम मार्ग का ज्ञान प्रशस्त किया।यही मार्ग आर्य आष्टांगिक मार्ग है जो दुख निरोध की ओर ले जाने वाला है। दुख का विनाश करने के लिए और निर्वाण पाने के लिए मानव के पास केवल यही एक मार्ग है।
- सम्यक दृष्टि
- सम्यक संकल्प प
- सम्यक वाणी
- सम्यक कर्मान्त
- सम्यक आजीविका
- सम्यक व्यायाम
- सम्यक स्मृति
- सम्यक समाधि।
1:-सम्यक दृष्टि
सम्यकदृष्टि का अर्थ है, जो वस्तु प्राकृतिक जैसी है, उसे वही दिखाई देगा अर्थात चार आर्य सत्यों का दर्शन करना, प्रकट्यसमुत्पाद का ज्ञान होना, इस प्रकार सभी धर्मों के स्वभाव को जानना कि ‘ सभी’ संस्कार अनित्य हैं,
सभी संस्कार दुख है, सभी धर्म अनात्म है का बोध होना ही सम्पर्क दृष्टि है। सभी की मिथ्या धारणाओं से दूर रहना सम्यक दृष्टि है।
2-सम्यक संकल्प (सम्मा संकप्पो)
इसका अर्थ है राग, हिंसा एवं प्रतिहिंसारहित संकल्प रखना अर्थात हमारी आशाएं, आकांक्षाएं एवं महत्त्वाकांक्षाएं ऊंचे स्तर की (कल्याणकारी) से नीचे स्तर की नहीं तथा हमारे योग्य हो, अयोग्य नहीं हमारे चिंतन-मनन,संकल्प-विकल्प का सम्यक होना ही ‘सम्मा संकप्पो’ है।
3-सम्यक वाणी ( सम्मा बाचा) इसका अभिप्राय है वाणी की शुद्धता, निर्मलता और पवित्रता-
(क) सत्य ही बोलना। (ख) दूसरों की बुराई न करना, चुगली चपाटी न करना। (ग) दूसरों के बारे में झूठी बातें (अफवाह) न फैलाना।
(घ) किसी के प्रति गाली-गलौज या कठोर वचन न बोलना झूठी गवाही न देना।
सदा विनम्र वाणी का प्रयोग करना।
(ङ) बुद्धि-संगत, सार्थक तथा उद्देश्यपूर्ण वाणी को व्यवहार में लाना, बेकार की मूर्खतापूर्ण बातों से बचना, चुगली नहीं करना, झगड़ा नहीं करना। (च) धम्मानुकूल बातें ही करना।
सम्यक वाणी का व्यवहार न किसी के भय की परवाह करता है और न किसी के
पक्षपात की। उसका किसी के निजी लाभ अथवा हानि से कोई तात्पर्य नहीं।
4. सम्यक कर्मान्त ( सम्मा कम्पन्त)- सम्यक कर्मान्त हमें ऐसे कुशल व्यवहार की शिक्षा देता है जिससे किसी दूसरे व्यक्ति की भावनाओं और अधिकारों को क्षति न पहुंचे तथा हमारे कार्य का समन्वय जीवन के मुख्य नियमों से अधिक से अधिक हो सके। जीव हिंसा, चोरी तथा मिथ्याचार-रहित कर्म करना ही सम्यक कर्मान्त है। कर्म का आरंभ मन से होता है, फिर वाणी और फिर आगे बढ़कर अंत में शरीर पर उतरता है। इसलिए इसे कर्मान्त कहा गया।
- सम्यक आजीविका (सम्मा आजीवो)- आजीविका ऐसी होनी चाहिए, जिससे किसी की हानि न हो और न ही किसी के प्रति अन्याय लोक-कल्याण की दृष्टि से सामान्यतः 1 हमें हथियार का व्यापार, प्राणी का व्यापार, मांस का व्यापार, शराब आदि नशीले पदार्थों का व्यापार तथा विष (जहर) का व्यापार नहीं करना चाहिए।
- सम्यक व्यायाम (सम्मा वायामो) – यहां व्यायाम का अर्थ ‘प्रयास’ है, शारीरिक कसरत नहीं। सम्यक व्यायाम का उद्देश्य है, इंद्रियों पर संयम रखना, बुरी भावनाओं को रोकना, अच्छी भावनाओं को उत्पन्न करने का प्रयत्न करना तथा उत्पन्न हुई अच्छी
भावनाओं को कायम रखना।
जीवन और देशनाएं
- सम्यक स्मृति (सम्मा सति)- सम्यक स्मृति का अर्थ है कि मन की स जागरूकता मन में उत्पन्न अकुशल विचारों के प्रति हमेशा सचेत रहकर मन को कर्म में लगाना काया, वेदना, चित्त और मन की उचित स्थितियों का ज्ञान उसके लि कुशल होने व क्षणभंगुर होने का ज्ञान रखना, सम्यक स्मृति है।
- सम्यक समाधि (सम्मा समाधि)- समाधि एक भावात्मक वस्तु है। यह मन के कुशल कर्मों को एकाग्रता के साथ करने का अभ्यास कराती है। यह मन की संयोजनोत्पन्न (बन्धनोत्पन्न) बुरे कर्मों की ओर आकर्षित होने की प्रवृति को ही समाप्त कर देती है। समाधि और सम्यक समाधि दोनों में बहुत अंतर है। समाधि का अर्थ है केवल चित्त की एकाग्रता, जबकि सम्यक समाधि का अर्थ है चित्त में स्थायी परिवर्तन के लिए पल-पल की सच्चाई के प्रति जागरूक अवस्था। लोभ, द्वेष, आलस्य, विचिकित्सा (संशय) तथा अनिश्चय आदि बाधाओं के बन्धनों को सम्यक समाधि के द्वारा ही शमन (जड़ से समाप्त किया जा सकता है। सम्यक समाधि मन को कुशल और हमेशा कुशल हा कुशल सोचने की आदत डालती है। इससे वह शक्ति मिलती है, जिससे व्यक्ति कल्याणरत रहता है।