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साथियो नमस्कार:आज के आर्टिकल में एक बहुत ही प्रासंगिक टॉपिक लेकर आया हूँ।आखिर समाज के लिए नेता और वैज्ञानिक में से किसका योगदान अहम है।। मनुष्य का कल्याण किनके हाथों में?जानें भारत के जलते प्रश्न part-2 ओशो की कलम से । आज के परिप्रेक्ष्य में जिस कदर राजनीति और राजनेता दूषित हो चुके हैं,राजनीति और नेताओं का लेवल बहुत ही गिर गया है,ऐसे में एक जिम्मेदार नागरिक,जागरूक प्राणी होने के नाते हमको विश्लेषण करना होगा कि क्या मात्र नेता ही मनुष्य और समाज ,देश का कल्याण कर रहे हैं?मैंने आज का टॉपिक ओशो की किताब”भारत के जलते प्रश्न “से उद्धरित किया है।आशा है आप इस लेख को पसंद करंगे।

मनुष्य का कल्याण किनके हाथों में?जानें भारत के जलते प्रश्न part-2 ओशो की कलम से
मैं आप से कहना चाहता है कि जिन लोगों ने समाज और देश का कल्याण किया, वे लोग कुछ और हैं। कोई वैज्ञानिक जो अपनी लेबोरेटरी में बैठकर खोज कर रहा है, वह कल्याण कर सकता है, लेकिन एक राजनीतिज्ञ नहीं-जो दिल्ली में बैठा है और तिकड़मबाजियां भिड़ा रहा है कि किसकी टांग खींचें, किसकी कुर्सी उलटायें? इससे हित होनेवाला नहीं है।
तुम्हारे लिए दवा कौन खोज रहा है?
एक लेबोरेटरी में अनजान आदमी जिसका गरीब कभी नाम भी नहीं जानेगा कि उसका बच्चा… किस पेनसिलिन की खोज से बच रहा है? कौन उसकी टी.बी. के लिए दवा का इंतजाम कर रहा है, दवा खोज रहा है? कौन उसकी कैंसर के लिए फिक्र कर रहा है, कौन उसकी उम्र बढ़ा रहा है? उसका उसे पता भी नहीं चलेगा। कौन उसके घर बिजली की रोशनी जला रहा है? उसे पता भी नहीं चलेगा। लेकिन राजनीतिज्ञ ऐसा है जो कुछ भी नहीं कर रहा है, केवल झंडा पकड़ना जानता है और जोर से चिल्लाना जानता है।
अखबार वाला लड़का
मैंने सुना है, एक सड़क के किनारे एक लड़का जोर से चिल्ला रहा है। अखबार बेच रहा है। एक आदमी ने उससे पूछा कि
क्या बचा लेते हो? एक-एक आने में अखबार बेच रहे हो, तुम्हें क्या बच जाता है? उसने कहा, बचता कुछ भी नहीं। एक-एक आने में वह जो सड़क पर दूसरी तरफ लड़का अखबार बेच रहा है, उससे खरीदता हूँ और एक-एक आने में बेच देता हूं। उस आदमी ने कहा, तुम बड़े पागल हो। लड़के ने कहा, पागल नहीं हूं। फिर उसने पूछा- तुम्हें मिलता क्या है? लड़के ने कहा, मुझे जोर से चिल्लाने का मजा मिलता है। उस आदमी ने कहा कि तुम बड़े होकर राजनीतिज्ञ हो सकते हो।
मानव जीवन के कल्याण के लिए कौन है समर्पित
मनुष्य का कल्याण करनेवाले कौन लोग हैं? वे चुपचाप अपने काम में संलग्न हैं। उनकी खोजें जिंदगी के अंधेरे कोनों में काम कर रही है। वे मर जायेंगे, आपके लिए आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन वैज्ञानिक आपके लिए जहर चखकर मर गया, इसलिएकि वह जहर किसी की जिंदगी न ले ले। आपको पता न चलेगा कि कौन वैज्ञानिक बीमारियों के कीटाणुओं की परीक्षण करते-करते खुद बीमार पड़ जाता है , कि वह कीटाण किसी दूसरे को बीमार न कर सकें।
आपको पता न चलेगा कि कौन वैज्ञानिक आटोमेटिक यंत्र खोज रहा है, जिससे किसी आदमी को श्रम करने की जरूरत न रह जाये। लेकिन राजनीतिज्ञ चिल्लाता रहेगा कि हम कल्याण करनेवाले है, हम कल्याण कर रहे हैं। राजनीतिज्ञ से कल्याण नहीं होता, क्रांतियों से कल्याण नहीं हुआ। बड़े मजे की बात है कि क्रांतियों से कोई कल्याण नहीं हुआ, बल्कि क्रांतियों ने कई अर्थों में हजार तरह की हानियां पहुंचायी हैं। मनुष्य के विकास में व्यवधान पैदा किये,बाधायें खड़ी को। जो सहज गति से जीवन की धारा जाती थी, उसे बहुत जगह से तोड़ा और रोका।
“अब ऐसी क्रांति की जरूरत है जो बाकी की क्रांतियों को भुला दे। अब एक ऐसी क्रांति की जरूरत है, जो कल्याण करनेवालों से कहें कि आप क्षमा करें। बहुत कल्याण हो चुका। पांच हजार साल से जो हमारा कल्याण करते हैं, अभी तक नहीं कर पाये, अब आप चुप हो जायें। अब आपकी कोई जरूरत नहीं है।
गरीब का कल्याण कैसे हो?
“गरीब के कल्याण का मतलब है, संपत्ति का उत्पादन और गरीब के कल्याण का मतलब है, ऐसे यंत्रों का उत्पादन जो संपत्ति को हजार गुना रूप से पैदा करने लगे। गरीब के कल्याण का मतलब है, पृथ्वी को वर्ग-विद्वेष से विहीन करने का उपाय, वर्ग-विद्वेष नहीं ।
लोकिन सारे समाजवादी वर्ग-विद्वेष पर जीते हैं। उनका सारा जीना क्लास-कान्फ्लिक्ट पर है। गरीब को अमीर के खिलाफ भड़काओ,कारखाना कम चले, कारखाने बंद हों, हड़ताल हो, बाजार बन्द हों, मोर्चे हों- इनमें लगे रहें। गरीब को पता नहीं कि जितने मोर्चे होते हैं, जितनी हड़तालें होती हैं, जितना कारखाना बंद होता है—गरीब अपने हाथों से गरीब होने का उपाय कर रहा है; क्योंकि ऐसे देश की संपत्ति कम होगी।
“कौन कर रहा है कल्याण? अगर कल्याण करना है तो जोर से लग जाओ संपत्ति पैदा करने में। जोर से कर्म में लगो, जोर से उत्पादन करो। वर्ग-विद्वेष की आग लगाकर उत्पादन की व्यवस्था को मत रोको; बल्कि वर्गों को निकट लाओ। लेकिन नेता वर्गों को निकट लाये तो नेता को कौन पूछे? नेता तभी पूछा जाता है जब वह किसी को लड़ाता है। बिना लड़ाये नेता का कोई अस्तित्व नहीं। इसलिए दुनिया में जब तक नेता रहेंगे, तब तक लड़ाई रहेगी। नेता को विदा करिये, लड़ाई विदा हो जायेगी।
नेता लड़ाई निर्माण करता है। वह नेता का भोजन है— उसका आधार, उसका प्राण, उसकी आत्मा, उसका परमात्मा है।
हिटलर ने लिखा है अपनी आत्मकथा में कि अगर बड़ा नेता होना हो तो बड़ी लड़ाई की जरूरत है और अगर असली लड़ाई न चल रही हो तो कोल्डवार — ठंडी लड़ाई चलाते रहो; लेकिन लड़ाई जारी रखो और लोगों को भयभीत रखो। क्योंकि भयभीत हालत में लोग नेता को पकड़ते हैं। जब लोग निश्चिंत हो जाते हैं, तब कहते हैं- हम निश्चित हैं, नेता की क्या जरूरत?
नहीं, लड़ाई जारी रखो तो वे कहेंगे, कोई अगुवा चाहिए, कोई नेता चाहिए। लड़ाई जारी रखो तो वे कहेंगे, कोई आगे चाहिए— बुद्धिमान, समझदार, जो लड़ सके। हम गरीब हैं, हम कैसे लड़ सकेंगे? इधर हिन्दुस्तान में आजादी के बाद के बीस-बाईस वर्षों में वर्ग-विद्वेष की आग पैदा करके हिन्दुस्तान के औद्योगीकरण में इस भांति पीठ में छुरा भोंका गया है; लेकिन यह गरीब को कभी पता न चलेगा कि उसने
अपनी ही पीठ में छुरा भोंका है।