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Mahatma gandhi ke jeevan ke kuchh virodhaabhaas : आज के इस आर्टिकल में महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of Mahatma Gandhi) के साथ-साथ उनके जीवन के कुछ प्रमुख विरोधाभास बताने जा रहा हूँ।लेख में दिए गए तथ्य विदेशी लेखकों की किताबों से सन्दर्भित किये गए हैं।विरोधाभास के अंशों से लेखक का कोई संबंध नहीं है।
2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)की 152 वीं जयंती है।इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है, गांधी नाम ही सत्य और अहिंसा का प्रतीक है ।गांधी जयंती पर गांधी दर्शन के विषय में बढ़ी-बड़ी बातें की जाएंगी,या हो सकता है कोई नई सरकारी स्कीम को लांच किया जाए,मगर इस मुल्क ने गांधी को आजादी की वर्ष गांठ भी नहीं मनाने दी,ये हिंदुस्तान के लिये सदियों तक एक अमिट दाग बनकर रह गया है।
आज भले ही गांधी के चरखे और खादी की उतनी उपयोगिता न हो ,मगर गांधी के (Mahatma gandhi ke jeevan ke) आदर्शों और वसूलों की देश को बहुत जरूरत है।आज देश सत्यमेव जयते की राह से भटक रहा है,इसके स्थान पर भ्रष्टाचार जयते आज फल फूल रहा है।
जन्म और भारत वापसी
गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में ब्रिटिश राज के दौरान गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था।इनके पिता का नाम करम चंद गांधी तथा माता जा नाम पुतली बाई था। 13 वर्ष की उम्र में इनका विवाह कस्तूरबा गांधी से हुवा
महात्मा गांधी ने अपने 20 और 30 के दशक का अधिकांश समय दक्षिण अफ्रीका में एक वकील और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता के रूप में बिताया, जहाँ उन्होंने भारतीयों के खिलाफ श्वेत सरकार के भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। यह वहां था कि उन्होंने पहली बार अहिंसक सविनय अवज्ञा का अभ्यास करना शुरू किया जो बाद में मार्टिन लूथर किंग जूनियर को का भी प्रमुख हथियार बना। 1914 में भारत वापस जाने के बाद, गांधी ने ब्रिटिश राज और भारतीय जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसने कुछ लोगों को “अछूत” के रूप में वर्गीकृत किया।
महात्मा गांधी के जीवन के विरोधाभास(Mahatma gandhi ke jeevan ke kuchh virodhaabhaas)
गांधी के जीवन की बारीकी से जांच करने से कुछ परेशान करने वाली खोजें हुई हैं। गांधी की जीवनी लेखक जैड एडम्स लिखते हैं कि-” गांधी अक्सर युवा महिलाओं को उनके साथ नग्न सोने के लिए मजबूर करते थे, जिसमें उनकी कम से कम एक पोती भी शामिल थी”। इसके अलावा, दक्षिण अफ्रीकी शिक्षाविद अश्विन देसाई और गुलाम वाहेद ने अपनी पुस्तक, “द साउथ अफ्रीकन गांधी: स्ट्रेचर-बेयरर ऑफ एम्पायर” में तर्क दिया है कि गांधी को दक्षिण अफ्रीकी सरकार के अफ्रीकियों के साथ व्यवहार में कोई समस्या नहीं थी।(लेखक -अश्विन देसाई जोहान्सबर्ग विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं। गुलाम वाहेद क्वाज़ुलु नटाल विश्वविद्यालय में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)
आर्यन ब्रदरहुड के समर्थक गांधी
अश्विन देसाई ने बीबीसी न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा कि- “गांधी आर्यन ब्रदरहुड में विश्वास करते थे।” “इसमें गोरे और भारतीय शामिल थे जो सभ्य पैमाने पर अफ्रीकियों से ऊपर थे। उस हद तक, वह एक नस्लवादी था। इस हद तक कि उन्होंने अफ्रीकियों को इतिहास से बाहर कर दिया या गोरों के साथ उनकी अधीनता में शामिल होने के इच्छुक थे, वे एक नस्लवादी थे”।
फिर भी जरूरी हैं गांधी।
भारतीय लेखक हों या विदेशी लेखक,गांधी जी के विषय में चाहे कितना ही विरोधाभास भरे इतिहास को खोज लें,मगर गांधी जी के अहिंसा के सूत्र को नकार नहीं सकते।गांधी की पहचान उनकी अहिंसा की नीति के कारण ही है,जो भारतवर्ष की संस्कृति में प्राचीन काल से ही रही है।
अगर दिन की बात हो और रात को भूल जाएं ऐसा हो नहीं सकता।उसी प्रकार महात्मा गांधी की बात हो और गोडसे को भूल जाएं ये संभव नहीं हो सकता।
जिस महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)ने आजादी के लिए अपनी सारी जिंदगी लगा दी,जो गांधी हिंदू वर्णव्यवस्था के प्रबल समर्थक थे,जो गाय को भी माता मानते थे,जो जातिव्यवस्था को हिंदू धर्म की पहचान मानते थे और भारत का विभाजन भी नहीं चाहते थे,अर्थात जो आरएसएस और सावरकर,गोडसे चाहते थे वही गांधी भी कर रहे थे,तो प्रश्न उठता है कि एक हिंदू जवान ने एक हिंदू संत की हत्या क्यों की?
इतिहास कई सबक भी सिखाता है, और कई सवाल भी खड़े करता है,लेकिन आज का दिन अर्थात 2 अक्टूबर गांधी जी की अच्छाइयों को उजागर करने और हिंसक हो रहे देश के लिए अहिंसा का मंत्र बताना ही हितकर होगा।