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साथियो आज के इस लेख में आजादी का अर्थ (meaning of freedom) वास्तव में क्या होना चाहिये?,और जो आज हो रहा है क्या यही आजादी का असली अर्थ Real meaning of freedom) है।इतिहास और वर्तमान को जोड़ते हुए मैंने अपने मन की बात को लिखने का साहस किया है।हो सकता है इस लेख से मुझे भी कटघरे में खड़ा कर दिया जाए।लेकिन कम से कम स्वतंत्रता दिवस के दिन तो हम अपने अधिकारों की बात तो कर ही सकते हैं।हमको सोच बदलने की जरूरत है,व्यवस्था खुद बदल सकती है।
meaning of freedom वर्तमान परिप्रेक्ष्य में 

जिस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए भगत सिंह जैसे 24 वर्ष के युवाओं ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था आज उसी आजादी का अर्थ meaning of freedom ) सिमट कर रह गया है। आजादी की बात करने पर अंग्रेजों ने भारतीयों पर जुल्म आधारित है और आज आजाद भारत में संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की बात करना 1947 से पहले जैसा गुनाह माना जाता है। मीडिया पर अंकुश प्रत्यक्ष नहीं है, मगर मीडिया कब्जे में है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहरा बिठा दिया गया है। सरकार के निर्णय और फैसलों पर असहमति जताने का मतलब राष्ट्रद्रोह जैसा अपराध हो जाता है। रोजगार मांगने वाले, महंगाई का विरोध करने वाले, मानव अधिकारों की बात करने वाले जिहादी या पाकिस्तानी करार दिए जाते हैं,
संविधान की प्रस्तावना में निहित “हम भारत के लोग” के स्थान पर हम भाजपा के लोग या हम आरएसएस के लोग कहने वाले ही देशभक्ति की श्रेणी में गिने जाने लगे हैं। अन्यथा मूल अधिकारों की बात करने वाले आरएसएस और भाजपा विरोधी तो मान ही जाएंगे साथ ही देशद्रोही का ठप्पा भी उन पर लग जाता है।
स्वतंत्रता दिवस पर नेहरू के योगदान को न भूलें।
पंडित नेहरू को बार-बार कोसने से ,कांग्रेस को बार-बार कोसने और नीचा दिखाने से देश की ऊर्जा कम नहीं हो जाती है। एक साथ देश में 5-5 आईआईटी खोलने वाले नेहरू को बार-बार नीचा दिखाना देश की नींव को कमजोर करने जैसा है। परमाणु ऊर्जा से देश को संपन्न कराने वाले नेहरू( परमाणु ऊर्जा आयोग बनाया) ने आखिर क्या गुनाह कर डाला कि भाजपा ने उनके देश के लिए किए गए योगदान और नेहरू परिवार की कुर्बानी और बलिदान को मजाक बना दिया है।
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नाम नहीं सोच बदलने की जरूरत ।स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
योजना आयोग को नीति आयोग बनाकर कौन सी नई नीति सामने आई है कि जो देश को विकास के मुहाने पर ले गई हो। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर ध्यानचंद करना कितना उचित है? जबकि ध्यानचंद के नाम पर पहले से ही पुरस्कार दिया जाता रहा है। एक महापुरुष का अपमान कर दूसरे का सम्मान करना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं मानी जा सकती है।
देश की आजादी के लिए कुर्बानियों को याद करें।
आजादी के 75 साल का जश्न मनाने का अवसर भारतवासियों को यूं ही नहीं मिला है। इस जश्न को मनाने के लिए लाखों माताओं ने अपनी गोद सूनी की है ,लाखों पत्नियों ने अपना सिंदूर मिटाया है। लेकिन हम उस बुनियाद को कमजोर करने में तुले हुए हैं, जिस पर भारत का गौरव, मान सम्मान, लोकतंत्र, संविधान, ज्ञान, विज्ञान और विकास तथा मानवता, समता, स्वतंत्रता छुपी हुई है।
1 दिन के जश्न मनाने से हम बहुत बड़े देश भक्त नहीं कहे जा सकते, हमको हर पल अपनी संविधान को मजबूत करने और देश की धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने की जरूरत है। खोखला पेड़ फिर चाहे बाहर से दिखने में कितना ही मोटा क्यों न लगे, मगर वह एक ही चोट में गिर जाता है।
खोखले राष्ट्रवाद पर नहीं, गोखले ,नेहरू,अंबेडकर आदि के विचारों पर चलने की जरूरत
इसलिए खोखले राष्ट्रवाद पर नहीं वरन गोखले, नेहरू गांधी अंबेडकर, भगत सिंह, लाला लाजपत राय, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, मंगल पांडे, बटुकेश्वर दत्त, झलकारी बाई लक्ष्मी बाई, उधम सिंह जैसे वीर महान क्रांतिकारियों के वसूलों पर चढ़ने की जरूरत है। गांधी का कत्ल करने वाले गोडसे की विचारधारा समाज तथा देश की अस्मिता के लिए जहर है.
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इतना इसलिए लिख पा रहा हूं कि मुझे यकीन है कि मेरा संविधान मुझे यह अधिकार देता है कि गलत को गलत और सही को सही कहा जाए।
मेरा मकसद किसी की बुराई करना नहीं वरन एक स्वतंत्र स्तंभका के तौर पर अपने मन की पीड़ा को कलम द्वारा लोगों तक पहुंचाना है।
और मन की बात करना हमको हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही सिखाया है जय भारत जय संविधान।