You are currently viewing नई सदी में जातिवाद कैसे हो खत्म?जानें 5 Big facts

नई सदी में जातिवाद कैसे हो खत्म?जानें 5 Big facts

Spread the love

जातिवाद क्या है?

विश्व के लिए 21 वीं सदी कई चुनौतियां और समस्याएं लेकर आई है.इस नई सदी में जातिवाद भी एक महामारी की तरह गम्भीर समस्या बनी हुई है.खासकर भारत वर्ष के परिप्रेक्ष्य में ये व्यवस्था और भी जटिल और चुनौतीपूर्ण बनी हुई है.अगर जातिवाद को भलीभांति समझना और जानना है तो ,आम हिंदुस्तानी के साथ नहीं,बल्कि डॉ आंबेडकर, ज्योतिबाफुले, साहूजी महाराज, एकलव्य,रोहित वेमुला,बाबू जगजीवन राम,राजेन्द्र प्रसाद,पेरियार रामासामी नायकर, आदि महापुरुओं के जीवन में झांककर देखना होगा.गुजरात के ऊना कांड को जानना होगा,उत्तराखण्ड़ में 1980 में घटित KAFLATA कांड,बागेस्वर का सोहन कांड,टिहरी का जितेंद्र कांड,उन्नाव कांड,मथुरा कांड आदि ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों उदाहरण हैं,जो भारत में जातिव्यवस्था और छुवाछुत की कुमान्यता को समझने के लिए सहायक हो सकते हैं.

नई सदी में जातिवाद कैसे हो खत्म?जानें 5 Big facts

जातिवाद एक ऐसी जटिल सामाजिक व्यवस्था है,जिसमें इंसान -इंसान के साथ भेदभाव करता है.तथाकथित ऊँची और नीची जातियों में बंटा हिंदुस्तान ,गोमूत्र तो पी सकता है मगर,एक शुद्र के हाथ का अच्छा भोजन नहीं खा सकता,और पानी नहीं पी सकता.इस पूरी भेदभावपूर्ण और अमानवीय व्यवहार को अस्पृश्यता के नाम से जाना जाता है.कुल मिलाकर जातिव्यवस्था एक समाज का कोड़ है,जो भारत को दीमक की तरह खोखला कर रहा है.”

भारत में जातियों का उदय?

जातिव्यवस्था मानव की उतपत्ति के साथ नहीं उपजी है.यह इंसानों द्वारा पैदा की गई बीमारी है.सिन्धुघाटी की सभ्यता जो विश्व की सबसे प्रमुख सभ्यताओं में विशेष स्थान रखती है,उस समय जातिप्रथा या वर्णव्यवस्था जैसी कोई चीज देखने मे नहीं आयी है.सायद इसी लिए सिन्धुघाटी की सभ्यता एक विकसित नगरीय सभ्यता थीं.सिंधुघाटी की सभ्यता के मुख्यतः 2 कारण इतिहासकार बताते हैं एक तो गंगा नदी में बाढ़ के आ जाने से ये सभ्यता विखर गयी ,और कुछ इतिहासकार कहते हैं कि आर्यों के भारत में आक्रमण से सिंधुघाटी की सभ्यता नष्ट हो गयी.

आर्यों के कई कबीलों ने दक्षिण एशिया से भारत में प्रवेश किया,और इन्होंने भारत के अदिवादियों को परास्त कर नई व्यवस्था की नींव रखी.धीरे-धीरे वैदिक काल का उदय होता है.और फिर वेदों,पुराणों ,स्मृतिओं की रचना होती है,तथा समाज को चार वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है-ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र.यही शुद्र आज के दलित,शिल्पकार,पिछड़े,आदिवासी,और कभी 1हरिजन कहे जाते थे.वैदिक काल में शुद्र और 21वीं नई सदी में दलित नाम भारत की गौरवगाथा को व्यक्त करता है.

भेदभाव के कारण

हिन्दू समाज में कई प्रकार की विभिनताएँ व्याप्त हैं,मगर एक राष्ट्र के रूप में अनेकता में एकता का भाव दिखाई देता है.सामाजिक रूप से,आर्थिक रूप से,राजनीतिक रूप से,भाषायी रूप से,क्षेत्रीयता के रूप में देश में भेदभाव तो होता है ,मगर इसमें जातिगत भेदभाव की भावना जैसा लज्जापन नहीं होता.दो मुख्य कारण हैं भेदभाव के-लिंग के आधार पर और जाति के आधार पर. नई शताब्दी तथा डिजिटल युग में जातिगत असमानता नई सदी में एक धब्बा है .

नई सदी में जातिवाद का स्वरूप?

नई सदी में जातिवाद और भेदभाव का तरीका कुछ बदला है.मूल भावना तो वही वैदिक काल और मनुस्मृति की है,मगर संविधान और कानून की डर से इसके स्वरूप में कुछ बदलाव अवस्य ही दिखता है.पहले की तरह अब जातिसूचक शब्दो का खुलेआम प्रयोग नहीं होता है.शिक्षा और व्यवसाय के साथ लोगों के व्यवहार में भी बदलाव अवस्य आया है.

ये भी पढ़े

https://sochbadlonow.com/21st-century-india/ (opens in a new tab)

21 वीं सदी में जातिवाद व

वर्णव्यवस्था के दुष्परिणाम

भारत का इतिहास सबूत है कि-भीतरी असमानताओं और जातिगत श्रेष्ठता की भावना ने भारत की गुलामी के प्रवेश द्वार खोल दिये थे.इसमें कोई दो राय नहीं कि अस्पृश्यता और छुवाछूत की मानसिकता और जातिगत ऊंच -नीच की परंपरा देश की उन्नति और राष्ट्रीयता के लिए अच्छी नहीं है.कितनी सभ्यताएं आयी और मिट गई,कितने राजवंश आये और मिट गए, कितनी सदियां आयी और बीत गयी,कितनी गंभीर महामारियां आयी ,प्लेग,पोलियो आदि मिट गए लेकिन हमारे स्वर्ण की चिड़िया के पंख जाती की धुंधली चमक को 21वीं सदी तक ढो रही है.इसी जातीयता ने देश में आरक्षण के नाम पर नफरत और वैमनस्य के बीज बोए हैं.एक कहावत है-“

क्या है समाधान का रास्ता?

जातिवाद और असमानता ,भेदभाव को खत्म करने के लिए भारत के संविधान में 6 प्रकार के मूल अधिकार नागरिकों को प्रदत्त किये गए हैं.संविधान की प्रस्तावना में ‘प्रतिष्ठा व अवसर की समता’ तथा अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता, अनुच्छेद 15 में धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध एवं अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता के अंत का प्राविधान रखा गया है.

प्रश्न उठता है कि क्या संविधान के अनुच्छेद, धाराएं और अनुबंध समाज में पूरी तरह से लागू हैं?जबाब न में ही ज्यादा होंगे.फिर भी नई सदी और नए युग में कुछ कारक हैं जो इस कलंक से राष्ट्र को मुक्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं.जानते हैं नई सदी में जातिवाद को कैसे खत्म किया जा सकता है.-

21वीं सदी में जाति-भेद मिटाने के कुछ उपाय

शताब्दियों तक दासता में पड़े रहने से प्रजा की मनोवृति गुलामों जैसी हो जाती है .वह साधारण उपदेश से आसानी से नहीं बदलती .उसे ठीक करने के लिए डंडे की आवश्यकता होती है. इसके बाद जो अगली पीढ़ी आती है वह अपने आप सुधरी हुई सोच की होती है. गत पीढ़ी की गुलामी की मनोवृति का कुत्सित संस्कार उस पर से दूर हो चुका होता है .

रूस में साम्यवादी सरकार ने जनता की पुरानी जारशाही के गंदे संस्कार को दूर करने के लिए इसी लिए डंडे से काम लिया है. फलस्वरूप उसकी वर्तमान पीढ़ी उन कुसंस्कारों से सर्वथा मुक्त है. अब सरकार को वहां दंड प्रहार की इतनी आवश्यकता नहीं होती. लोग अपने- आप साम्यवाद के सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं.

भारत में भी उसी प्रकार हिंदू समाज और राष्ट्र की प्राणघातक शत्रु, जात- पात को दूर करने के लिए डंडे से काम लेने की आवश्यकता है .लोक- राज्य या धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ यह नहीं कि किसी व्यक्ति को धर्म- विश्वास या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर ऐसा दुष्कर्म करने दे जाएं जो समाज और राष्ट्र की अधोगति का कारण बन रहे हैं. राजा राम मोहन राय के युग के कुछ हिंदू ‘सती’ प्रथा को देवी-देवताओं पर मनुष्य की बलि चढ़ाने को अपना धर्म मानते थे. क्या दंड देकर इन अमानुषिक प्रथाओं को बंद नहीं करना पड़ा? इसी प्रकार जात पात को भी एक अपराध ठहरा कर सजा देनी चाहिए.नई सदी में जातिवाद जिस तरह फिर से भयानक रूप ले रहा है वह भविष्य के लिए चिंता का विषय है.

  • सरकार गजटेड ऑफिसर उन्हीं लोगों को नियुक्त करें जो जातिवाद को न मानते हो. अपनाया अपनी संतान का विवाह अपनी जाति के भीतर करने वाले किसी भी व्यक्ति को गजटेड ऑफिसर न बनाए जाए .स्कूल और कॉलेजों की पाठ्य- पुस्तकों में जात पात के विरुद्ध पाठ देकर भारत की अगली पीढ़ी की सोच को एकदम बदल दिया जाए.जाति भेद को मिटाने का साधन अंतरजातीय विवाह से अच्छा और दूसरा क्या हो सकता है?
  • यदि पंजाब और मद्रास के बीच, बंगाल और मुंबई के बीच, राजस्थान और केरल के बीच एक एक सहस्त्र अंतर्जातीय और अंतरराज्यीय विवाह हो जाए तो भाषा और प्रांत का पक्षपात बहुत शीघ्र दूर हो जाए.
  • नई सदी में जातिवाद को मिटाने के लिए राजनीति को भी अपना चेहरा बदलना होगा.आरक्षण खत्म किया जाए,पर उससे पहले चारों वर्णों में रोटी-बेटी का संबन्ध स्थापित हो जाये.
नई सदी में जातिवाद कैसे हो खत्म?जानें 5 Big facts
.

ये है 21 वीं सदी का भारत!Technology v/s Casttlogy!जानें तैयारी और 5 Big बाधाएं

DISCLAIMER

इस आर्टिकल(नई सदी में जातिवाद) का उद्देश्य किसी भी कीमत पर किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है.प्रसंग और विषय-वस्तु को भली -भांति समझने के लिए कुछ ऐसे शब्द प्रयोग किये गए हैं ,जो गैर संवैधानिक हैं.इसके लिए एडिटर क्षमा प्रार्थी है.

सन्दर्भ –हिंदुत्व जो हिंदुओं को ही ले डूबा

लेखक–संतराम ,बीए.

Ip human

I am I.P.Human My education is m.sc.physics and PGDJMC I am from Uttarakhand. I am a small blogger

Leave a Reply