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भारत में अंधविश्वास की जड़े(Roots of Superstition in India),संवैधानिक समाधान।

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अगर हम भारत की गरीबी और कमजोरियों पर नजर डालें तो कई कारण नजर आयंगे।एक अहम कारण जिसने समाज को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेखबर रखा है वह है भारत में अंधविश्वास की जड़े(Roots of Superstition in India)इसको अगर बुराइयों में ही सामिल किया जाए तो बेहतर होगा।आजादी से पहले कई ऐसी कुप्रथाएं व्याप्त थीं जिनको अंग्रेजों ने कानून बनाकर खत्म किया।जिनमें सती प्रथा,प्रमुख है।

भारत में अंधविश्वास की जड़े(Roots of Superstition in India),संवैधानिक समाधान।

भारतीय संविधान के मौलिक कर्त्तव्यों (अनुच्छेद 51ए) के अंतर्गत वर्णित है कि प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद, ज्ञानार्जन और सुधार की भावना का विकास करे। लेकिन हालात तो इसके उलट ही दिख रहे हैं। देश-दुनिया में, समाज में अंधविश्वास जड़ें जमाए हुए है। इसे कभी संस्कृति की धरोहर का हिस्सा बता दिया जाता है तो कभी और कुछ। यह कट्टर आस्था के आकाश में भी विचरण कराता है। पश्चिमी देशों में जहां अंधविश्वास को गंभीरता से नहीं लिया जाता, वहीं पूर्वी देशों में इसके प्रति परंपरा का वह सोपान है जो कभी कभी जुनून बन कर मानव मस्तिष्क को जकड़ लेता है और सामाजिक तानेबाने को आघात भी पहुंचाता है।

भारत में अंधविश्वास की जड़े(Roots of Superstition in India),संवैधानिक समाधान।
फोटो:सोसल मीडिया

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जहां तक भारत की बात है तो देश के ज्यादातर हिस्सों में अंधविश्वासी परंपराओं ने गहरी जड़े जमा रखी हैं, खासतौर से ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में। इसी महीने बिहार के एक गांव में भूत-प्रेत का आरोप लगा कर एक महादलित के पूरे परिवार को मारपीट कर पंचायती आदेश से गांव से निष्कासित कर दिया गया। पीड़ित परिवार ने स्थानीय थानेदार से न्याय की गुहार लगाई। किंतु उसे न्याय नहीं मिल सका। अंधविश्वास की एक रोचक घटना छत्तीसगढ़ के एक गांव की है जहां इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए मेंढक-मेंढकी की शादी आदिवासी परंपराओं से करवाई गई। इस आयोजन में आसपास के बारह गांवों के करीब तीन हजार लोगों ने हिस्सा लिया।

हालांकि उस जिले में पचहत्तर प्रतिशत बारिश हुई है फिर भी सूखे जैसी स्थिति से बचने के लिए लोगों ने मेंढक-मेंढकी की शादी कराई। लेकिन हाल में मध्य प्रदेश की एक घटना ने सबसे विचलित कर दिया। अच्छी बारिश के लिए दमोह जिले के एक गांव में कई नाबालिग बालिकाओं को गांव में निर्वस्त्र घुमाया गया। ऐसी घटनाएं तो बानगी के रूप में दिखाई देती हैं, जब वे खबरों का हिस्सा बन कर सामने आ जाती हैं। लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी असंख्य घटनाएं सामान्य बात हैं। देवताओं को खुश करने के लिए बच्चों की बलि तक चढ़ा दी जाती है।

सवाल है कि आज जब देश बड़े-बड़े आविष्कारों और विकास की गाथाएं लिख रहा है तो मन को विचलित करने वाली घटनाओं से समाज को कैसे मुक्त कराया जाए। मनोवैज्ञानिक तथ्य बताते हैं कि कभी कभी अंधविश्वास से व्यक्ति को अस्थायी संतुष्टि और सुख का अनुभव होता है। यह माना जाता रहा कि अंधविश्वास पुराने दौर की मान्यताओं और आधुनिकता के प्रति अज्ञान से पैदा होता है। जबकि आधुनिक विचारों एवं जीवन शैली में अंधविश्वासों की कोई जगह नहीं होती।

सर्वेक्षण बताते हैं कि धर्म और जाति या सामाजिक मान्यताओं का आंख मूंद कर अनुसरण करने से अंधविश्वास के बादल घनीभूत होते हैं। इसी का नतीजा हैं कि कभी किसी को डायन समझ कर मार दिया जाता है तो कहीं छोटे बच्चों को बलि देने,अंगभंग करने या किसी ढोंगी धर्मगुरु के प्रति अंधे समर्पण के रूप में यह देखा जा सकता है। यह भी सच है कि किसी उपदेश या कानून से समाज से अंधविश्वास नहीं मिटाया जा सकता। अंधविश्वास को जड़ से खत्म करने का एक ही रास्ता है, और वह है शिक्षा। शिक्षा के माध्यम से लोगों को जागरूक बना कर, सामाजिक जागृति के विभिन्न कार्यक्रम चला कर ही हम इस बुराई को समाज से मिटा सकते हैं।

मनुष्य जाति के क्रमिक विकास के साथ-साथ बहुत से अंधविश्वास धीरे-धीरे लुप्त होते चले गए और आगे भी ऐसा होता रहेगा। वैज्ञानिक चिंतन की सबसे पहले मुठभेड़ अंधविश्वास से होती है। विज्ञान जिस विवेक का विकास करता है वह केवल हमें तंग रिवाजों के मकड़जाल से बाहर निकालता है और हमारी सोच में सृजनात्मक खुलापन भी भरता है। आवश्यकता इस बात की है कि अंधविश्वास से हुई असीमित मानवीय संसाधन की क्षति को हम तथ्यपरकता की कसौटी पर मूल्यांकन करें तो इस समस्या से हम मुक्ति पा सकेंगे।

श्रोत:-जनसत्ता

Ip human

I am I.P.Human My education is m.sc.physics and PGDJMC I am from Uttarakhand. I am a small blogger

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