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वायकोम सत्याग्रह 20 वीं सदी में अछूतों का सबसे बड़ा आंदोलन था.इसने भविष्य के लिए दलितों में सामाजिक चेतना को जगाने का काम किया.
लोग अपनी यातायात की सुविधा के लिए सड़क के लिए आंदोलन करते हैं,ये तो सुना भी है और होता भी है.अगर सड़क होते हुए भी कोई सड़क पर चलने के लिए आंदोलन करे तो बात कुछ अटपटी लगती है.केरल में एक ऐसा ही आंदोलन 1925 में पेरियार रामास्वाम नायकर के नेतृत्व में हुवा था.जो इतिहास में वायकोम सत्याग्रह के नाम से अमर है.

अक्सर ये सुनने में आता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में भारत के अछूतों (दलितों) की कोई खास भूमिका नहीं रही है.लेकिन लोग सरदार उधमसिंह और भगतसिंह को भूल जाते है.जो हिन्दू तो नाम के थे मगर अछूत थे,भारत पर तो अक्सर विदेशी आक्रमण हिट रहे,कभी अरबों ने,कभी यूनानियों ने,कभी गजनवियों ने और अंत में अंग्रेजों ने भारत को 2 शताब्दियों से पूर्ण रूप से गुलामी की जंजीरों में कैद कर लिया.
क्यों हुवा था वायकोम सत्याग्रह:-

भारत के हिन्दू सवर्ण अंग्रेजों की गुलामी को पचा गए,जबकि वो विधर्मी ईसाई थे.और अपने ही धर्म के तथाकथित शूद्रों को हिंदू अछूत बनाकर उनका शोषण करते रहे.यहाँ जिन्ना की ओ बात याद आती है जब उन्होंने कहा था कि-भारत में एक नहीं दो राष्ट्र हैं.धर्म ने हिंदुस्तान का बंटवारा किया और इसी धर्म ने वायकोम सत्याग्रह भी कराया.
वैकोम सत्याग्रह की शुरुआत की थी दलित क्रांतिकारी टी. के. माधवन और उनके सवर्ण दोस्त केशव मेनन और के. केलप्पन ने। जनवरी 1924 में उन्होंने ‘छुआछूत-विरोधी समिति’ बनाई जिसका लक्ष्य था बाकी सभी जगहों के साथ साथ धार्मिक संस्थानों में भी दलितों को प्रवेश का अधिकार दिलवाना, क्योंकि ‘भगवान की नज़रों में सभी समान हैं। इन्हीं टी. के. माधवन ने त्रावणकोर सभा में दलितों को मंदिर प्रवेश का हक़ दिलाने के लिए अर्ज़ी पेश की थी और इसी समिति ने ये आंदोलन बुलाया, जिसका पहला लक्ष्य था श्री महादेव मंदिर। सभा में माधवन की अर्ज़ी स्वीकार नहीं हुई थी और ऐसी मांगें करने पर उन्हें गिरफ़्तार भी किया गया था। अर्ज़ी पेश करना जब असफल हुआ तब माधवन और उनके साथियों ने सत्याग्रह आंदोलन का आयोजन करने का फैसला किया। साधारण दलित जनता के साथ कई नेता और क्रांतिकारी भी इस आंदोलन में शामिल हुए, जिनमें दक्षिण भारत के मशहूर दलित क्रांतिकारी और समाज सुधारक ई. वी. रामस्वामी ‘पेरियार’ भी थे। सभी आंदोलनकारियों में से पेरियार अकेले थे जिन्हें दो- दो बार गिरफ़्तार किया गया, जिससे उनका नाम ‘वैकोम वीरार’ या ‘वैकोम का वीर’ पड़ा।
त्रावणकोर (केरल) में ऐसा था जातिपन्न
केरल में छूआछूत की जड़ें काफ़ी गहरी जमीं हुई थीं। यहाँ सवर्णों से अवर्णों को 16 से 32 फीट की दूरी बनाये रखनी होती थी। अवर्णों में ‘एझवा’ और ‘पुलैया’ अछूत जातियाँ शामिल थीं। 19वीं सदी के अंत तक केरल में नारायण गुरु, एन. कुमारन, टी. के. माधवन जैसे बुद्धिजीवियों ने छुआछूत के विरुद्ध आवाज उठाई.रामास्वामी नायकर (परियार) अंधविश्वास और ब्राह्मणवाद भारत के अन्य क्षेत्रों की तरह केरल में भी छूआछूत की जड़ें काफ़ी गहरी जमीं हुई थीं। यहाँ सवर्णों और अवर्णों को 16 से 32 फीट की दूरी बनाये रखनी होती थी.अर्थात अछूतों से कोरोना वायरस से भी ज्यादा खतरा था?कोरोना के बचाव के लिए तो 2 गज की दूरी प्रयाप्त है. अछूतों में ‘एझवा’ और ‘पुलैया’ अछूत जातियाँ शामिल थीं.19वीं सदी के अंत तक केरल में नारायण गुरु, एन. कुमारन, टी. के. माधवन जैसे बुद्धिजीवियों ने छुआछूत के विरुद्ध आवाज उठाई.रामास्वामी नायकर (परियार) अंधविश्वास और ब्राह्मणवाद के घोर विरोधी थे.इन्हीं लोगों के नेतृत्व में त्रावणकोर (केरल ) के गांव में वायकोम सत्याग्रह आंदोलन हुुवा.
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आज पूरे विश्व को कोविड-19 वायरस ने हिलाकर रखा है.ठीक इसी प्रकार से हिन्दुस्तान को जातिवाद के वायरस ने सदियों से समाज को अपंग बना रखा है.कोरोना महामारी से बचने के लिए 2 गज की सोशल डिस्टनसिंग रखी गयी है.मगर हिन्दुत्व के हिंदुपन्न में अछूतों को 16 से 32 फिट की दूरी बनाकर चलना होता था.क्या खूब सनातन धर्म है,कुत्ते को अपने बिस्तर पर सुला सकते हैं,गाय को माता और बैल को बाप कह सकते हैं,मगर मनुष्य होकर भी उससे 32 फिट की दूरी बनाए रखना आखिर कौन सा ऐसा वायरस था जो सबको निगल जाएगा?

उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में छुआछूत की भावना अधिक प्रबल है.उस वक्त परियार ई रामस्वामी नायकर हिंदुत्व के अंदर व्याप्त विषमताओं और भेदभाव के विरुद्ध दीवार की तरह खड़े थे.और दूसरी तरफ डॉ0 अंबेडकर कानून के द्वारा अछूतों के हितों की लड़ाई लड़ रहे थे.केरल के त्रावणकोर में वायकोम सत्याग्रह अछूतों का सड़क और चलने के अधिकार के लिए था.

सामाजिक पृष्ठभूमि:
केरल के वायकोम में दलितों(अछूतों ) मंदिर के सामने की सड़क पर चलने की पावबन्दी थी.सड़क से 16 फिट और 32 फिट की दूरी बनाकर अछूत वर्ग को जाना पड़ता था.देश के अन्य हिस्सों में दलितों को सड़क पर चलने की मनाही तो कम थी,मगर उनको गले में निशानी के तौर पर काला धागा बांधना पड़ता था,ताकि सवर्णों को पहचान हो जाये और उनको छूने से बच जाए.साथ ही गले में झाड़ू लटकाकर चलना होता था.किसी सवर्ण के पैर उनके पद चिन्हों ओर न पड़े ,वे झाड़ू से पद चिन्ह मिटाते जाते थे.इसी कलंक के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन था वायकोम सत्याग्रह.
आजादी के बाद भी जारी है छुआछूत:-
वायकोम सत्याग्रह आजादी से पहले छुआछूत के विरूद्ध चलाया गया सबसे बड़ा असहयोग आंदोलन था.गुलामी की दासता से देश आजाद हो गया,मगर संविधान लागू होने के 70 साल बाद भी जाति व्यवस्था की जंजीरें पूर्ण रूप से टूटी नहीं हैं.अछूतपन -हिंदुपन्न एक दूसरे के पर्यावाची बन चुके हैं.जाति व्यवस्था को सिर्फ वायकोम या महाड़ सत्याग्रह द्वारा पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता है.जब तक सी राजगोपालाचारी,राजा राम मोहन राय,टी के माधवन जैसे ब्राह्मण नेता खुद इसकी पहल नहीं करते ,वायकोम सत्याग्रह सिर्फ इतिहास बनकर ही सिमट जाएगा.
महाड़ सत्याग्रह:

वायकोम सत्याग्रह से उत्साहित होकर डॉ0 अम्बेडकर ने 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित महाड़ गाँव में चवदार तालाब से दलितों को पानी पीने के अधिकार के लिए सत्याग्रह किया.इसके बाद ब्रिटिश शासन को कानून बनाना पड़ा. और चवदार का तालाब सबके लिए खोल दिया गया.दोहरी गुलामी से लड़ता हुवा दलित समाज एक शासक से तो मुक्त हो गया मगर,हिंदुशाही जातिगत शासन प्रणाली से अभी भी गुलामी की दशा में जी रहा है.जब तक समाज की सोच वैज्ञानिक और अंधविश्वास मुक्त नहीं हो जाती ,अछूपन्न की परछाई हिन्दू धर्म से हट नहीं सकती.