फिल्म पठान के जिस गाने पर इस वक्त देश में जबरदस्त विरोध चल रहा है उससे भविष्य में देश में कुछ और नए परिवर्तन दिखाई देंगे। अगर सच में कहा जाए तो रंग प्रकृति की एक अमूल्य धरोहर हैं प्रकृति के अलावा इस ब्रह्मांड में किसी का किसी चीज पर कॉपीराइट नहीं हो सकता है ।जो भी मनुष्य ने हासिल किया है इसी प्रकृति से किया है। लेकिन आज राजनीति का स्तर इस कदर अपने विचारधारा से भटक चुका है कि उसके सामने रंगो पर, दंगों पर, जाति पर क्षेत्रों पर विभाजन करने के अलावा और कुछ नजर नहीं आता है।
जब बात भगवा रंग की खुलकर सामने देश में आ ही गई है तो इस पर क्यों हम भविष्य की चिंता को भी जाहिर करके देखें, और यह जाहिर करना भी जरूरी है, और इस पर सचेत रहना भी शायद मैं जरूरी समझता हूं ।बचपन से लेकर आज तक हमने देखा है, बेशक इस देश में हिंदू -मुस्लिम का टकराव कई बार हुआ है विभाजन की त्रासदी इस मुल्क ने झेली है। और यह सब अगर हम आज की राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से देखें तो शायद यह सब कहीं ना कहीं राजनीति का खेल ही नजर आता है। शायद राजनीति के जो पथ प्रदर्शक उस वक्त थे अगर उन्होंने हिंदुत्व का और इस्लाम का अलग-अलग गुणगान करना उनके निजी स्वार्थों के लिए बात रखना और धर्म को राजनीति से जोड़कर अपने को राजनीति के शिखर पर पहुंचाने की महत्वाकांक्षा नहीं रखी होती तो शायद भारत और पाकिस्तान का बंटवारा भी ना होता । और शायद इस देश में महात्मा गांधी की हत्या भी नहीं होती।
बात अगर रंगों की छिड़ी है तो रंग तो पूरे ब्रह्मांड में बिखरा हुआ है ।वह चाहे भगवा हो, लाल हो, पीला हो, काला हो ,नीला हो ।और यह भी हमको जान लेना जरूरी है कि प्राथमिक जो रंग हैं वह हरा, नीला और लाल ही है ।और उन्हीं के मिश्रण से उन्हें के संगम से अन्य रंग बनते हैं।
अगर हरा रंग मुसलमान का माना जाए और भगवा रंग हिंदुओं का तो इस भगवा रंग में भी कहीं न कहीं हरा रंग छिपा है। बात चली थी फिल्म की और फिल्म के नायक शाहरुख खान की क्योंकि नायिका हिंदू और नायक मुसलमान शायद तभी इस पर इतना विवाद हिंदू संगठनों ने खड़ा किया है। और जब आज के कुछ प्रगतिशील विचारक और स्वतंत्र मीडिया के लोगों ने पूरी बॉलीवुड की और भोजपुरी जिनमें भगवा रंग पहले से ही मौजूद था और उसमें इस तरह के कपड़ों में कई गाने फिल्माए गए थे और उन फिल्मों के जो हीरो थे वह आज भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं वो चाहे रवि किशन हो या निरहुआ ।
बात अगर रंगों की इसी तरह बिखरती रही और रंग पर इस तरह से राजनीति और खून खराबे की बातें होती रहें तो शायद आने वाले समय में रक्षाबंधन होली पर भी शायद कुछ और ही रंग नजर आए।
क्योंकि हमने देखा है कि रक्षाबंधन विशुद्ध रूप से हिंदुओं का त्यौहार है लेकिन हमने बचपन से देखा है कि वह जो राखियां विभिन्न रंगों की होती हैं उसमें भगवा रंग भी होता है, हरा रंग भी होता है ,लाल रंग भी होता है नीला भी होता है लेकिन उनको एक मुसलमान भाई भी उनको बेचता है ,और होली के रंग हजार रंगों को अपने में समाए हुए हैं और जिसमें शायद भगवा रंग भी छिपा हो और उस रंग को भी हमने एक मुसलमान को बेचते हुए देखा है, ।
तो क्या आज ये रंग भी सिमट कर रह जाएंगे और रंगों पर इसी तरह से एक वर्ग विशेष अपना कॉपीराइट समझने लग जाएगा तो शायद वह दिन दूर नहीं जब यह मात्र कहावत रह जाएगी कि भारत की महानता ही अनेकता में एकता।यह शब्द किताबों के कोटेशन तक, 1 पंक्तियों तक सिमट जाएगा।सोच बदलो ।समाज जगाओ
आई. पी.ह्यूमन
स्वतन्त्र स्तंभकार
उत्तराखंड