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उत्तराखंड में मंत्र हुए फेल!सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूर और देवभूमि :कहाँ गए 33 करोड़ !

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कबीर दास जी ने कहा है कि दु:ख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोई जो सुख में सुमिरन करे दु:ख काहे को होय।
उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों की जान जिस तरह से फंसी पड़ी हुई है उनके लिए कबीर दास की ये पंक्तियां लिखने को मैं मजबूर हुआ हूं ।
जब परिस्थितियों अनुकूल होती हैं सत्तासीन लोग, राजनीतिक दल के लोग सत्ता के नशे में चूर होते हैं तो तब उन्हें हिंदू- मुसलमान, गाय, जाति, धर्म ,मंदिर- मस्जिद के अलावा कुछ याद नहीं आता है. चारों ओर मंत्रो का शोर रहता है। लेकिन आज सभी मंत्रों की भी और आस्था की भी पोल देव भूमि उत्तराखंड की इस सुरंग हादसे ने खोल कर रख दी है ।जहां दो हफ्ते से 41 परिवारों की आँखें आँसुओं से नम पड़ीं हुई है। उनकी सांसें थमी हुई है। क्योंकि उनके अपने परिजन सुरंग में फंसे पड़े हुए ।

उत्तराखंड में मंत्र हुए फेल!सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूर और देवभूमि :कहाँ गए 33 करोड़ !

आखिर आज हमारी वैज्ञानिकता, हमारे विकास कार्य और हमारी दूरदर्शिता की पोल खुलकर सामने आई है ।भारत के परिपेक्ष में ही नहीं विश्व में भी आज इस सुरंग हादसे ने भारत की मशीनरी और यंत्रों की तथा आपदा प्रबंधन की कलई खोल कर रख दी है।भारत के पास मंत्र तो लाखों हैं लेकिन ऐसे यंत्र नहीं है जो दो हफ्ते के बाद भी उन मजदूरों तक पहुंच पाए हैं। इसको विडंबना ही कहा जाएगा कि राजनीतिक पार्टियों ने जिस कदर वैज्ञानिकता पर पर्दा डालकर अंधविश्वास और रूढ़िवादिता को बढ़ावा दिया है उसी का परिणाम है कि आज हम यंत्रों के क्षेत्र में विज्ञान के क्षेत्र में काफी पीछे रहे हैं।

उत्तराखंड में मंत्र हुए फेल!सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूर और देवभूमि :कहाँ गए 33 करोड़ !
सिलक्यारा सुरंग में रेसक्यू ऑपरेशन

बेशक 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के हर कोने पर विशालकाय, गगन चुंबी और विश्व स्तर के मंदिरों का निर्माण कराया है, यहां तक कि केदारनाथ में भी हजारों करोड रुपए की लागत से होने वाली निर्माण परियोजनाओं को देखा जाए या देश की अन्य क्षेत्रों में जितनी तेजी से काम मंदिरों के विकास और सौंदरीकरण के लिए किया गया है उसका अगर 30% भी साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में किया होता तो हम कह सकते थे कि भारत महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।

मेरा मकसद देश की आस्तिक लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है और नहीं किसी प्रकार का इस पर टिप्पणी करने का कोई व्यक्तिगत मकसद है। आज संविधान दिवस है 26 नवंबर । भारत के संविधान में भी अंधविश्वास और रूढ़िवादिता को नकारा है।

भारत का संविधान वैज्ञानिकता और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने का संकेत देता है उसका अनुसरण करने का आह्वान करता है ।लेकिन अब लगता है कि भारत के संविधान पर धीरे-धीरे पर्दा डालकर अंधविश्वास की मोटी परत को देशवासियों के आंखों में बांध दी गयी है। मैं इस वक्त काफी व्यथित मन से अपनी बात कहने को मजबूर हुआ हूं कि, आखिर इस देवभूमि में इस पवित्र भूमि में जहां कहा जाता है कि 36 करोड़ देवी देवता वास करते हैं, यहां साक्षात शिव का निवास स्थान है, न जाने कितने ऐसे देवी देवता हैं जो हिमालय की कंदराओं पर निवास करते हैं। लेकिन आज जब सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश की यहां तक की पूरे विश्व की नजरे उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग पर टिकी हुई हैं जहां 41 मजदूरों की जान फंसी पड़ी हुई है। उनके परिजन पल-पल की खबरों के लिए आंखें टिकाए हुए टीवी के सामने बैठकर यह जानने की उम्मीद में रहते हैं कि कब उनके अपने बाहर निकलेंगे।

दोस्तों हमने मंत्रो में शायद नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने तक का काम किया है ।लेकिन आज हमको मंत्रों की नहीं यंत्रों की जरूरत पड़ी है, मशीनों की जरूरत पड़ी है, जो आज ना तो उत्तराखंड के पास है न भारत के पास है। आज हमको उन मशीनों के लिए उन यंत्रों के लिए विदेश की शरण में जाना पड़ रहा है। मैं आस्था पर चोट करना नहीं चाहता हूं मैं धार्मिकता पर चोट करना नहीं चाहता हूं मैं सिर्फ यही आवन करना चाहता हूं कि आप चाहे कुछ भी कहो धर्म और आस्था एक निजी विषय है। इसको उन्माद के रूप में देश -समाज और व्यक्तियों में इस कदर न फैलाया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी वैज्ञानिकता से दूर हो जाए और अंधविश्वास से वह कूट-कूट कर भर जाए ।तो जब हमें मशीनों की, यंत्रों की, टेक्नोलॉजी की जरूरत पड़ेगी तब ना हमारा कोई मंदिर काम आएगा,न मस्जिद काम आएगा ,ना गाय काम आएगी और न कोई मंत्र काम आएंगे। सोच बदलकर अगर हम देखें अंधभक्त और अंधविश्वास के चश्मे को हटाकर अगर हम देखें तो उजाला तो सर पर विज्ञान से ही मिलेगा। सूर्य से ही मिलेगा चंद्रमा से ही मिलेगा जो की प्राकृतिक शक्ति है। इसके इत्तर हम कुछ भी कर लें हमको विज्ञान के शरण में जाना ही पड़ेगा, हमको मशीनों की शरण में जाना ही पड़ेगा, हमको यंत्रों की शरण में जाना ही पड़ेगा ।बेशक हमारे पास लाखों, हजारों मन्त्रों के ढेर पड़े हैं।लेकिन 14 दिनों से उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में 41 लोगों के जीवन बचाने के लिए मशीनों और यंत्रों की ही जरूरत पड़ रही है।इसलिए सोच बदलो समाज जगाओ।

Disclaimer:आर्टिकल का मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।नहीं किसी की आलोचना करना है,सिर्फ इतना सन्देश देना चाहता हूं कि रास्ता खोदने मशीन ही काम आती है ,यंत्र ही जीवन को बचाते हैं।एंबुलेंस हॉस्पिटल की तरफ दौड़ती है,मंदिर मस्जिद,गिरजाघर की तरफ नहीं।

Ip human

I am I.P.Human My education is m.sc.physics and PGDJMC I am from Uttarakhand. I am a small blogger

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